Sunday, May 9, 2021

Controlled upward tapping

Controlled upaward tapping


Controlled upward tapping(CUT) is a proven harvesting practice to achieve sustainable high yield for long term from old and senile trees. It can be practised from renewed panel stage onwards on the virgin bark above the basal panel. The combination of Low Frequency Tapping with CUT from renewed panel stage can increase the economic life of trees up to 40 to 45 years. In general 30-50% higher yield can be obtained for many years under CUT. CUT can be adopted under the following situations: 1. Low yield from the renewed bark. 2. Renewed bark is not suitable for tapping because of irregular growth, diseases or panel dryness. For prolonging economic life of trees after the completion of BI-2 panel (D panel). For simultaneous tapping of both basal and high panels (intensive tapping for one or two years) while in BI-1 and BI-2 stage. For CUT, the tapping cut is opened on the virgin bark just above the renewed bark of the basal panel. If CUT is to be initiated during the first/ second year of tapping on BI-1 (C) panel, the CUT panel should be taken above BO-2 (B) panel. The normal recommended CUT practice in India is periodic panel changing, i.e., basal panel tapping (S/2) with rainguard during rainy season, and CUT (S/4) on high panel during non- rainy season. The length of tapping cut can be quarter spiral irrespective of the girth of tree and its slope should be 45°. Normally one panel can  be tapped for two years under continuous tapping or four years under periodic panel changing. Thus the duration of CUT can be 8-16 years under S/4 d3 cut. When the frequency is d4, cach S/4 cut can be tapped for 5 years (5 x 4 = 20 years CUT). However, under weekly tapping, the length of tapping cut for CUT should be S/3, and each S/3 cut can be tapped for seven years (7 x 3 = 21 years CUT). Since the tapping frequency is weekly (d7), thickness of bark shaving should be 2.5mm/tap, but monthly bark consumption is only 1cm. Tapping on the upper cut should be done with maximum control on bark consumption (as per Table 10) and maintenance of the angle of cut (45°). Injury to cambium should be avoided. For CUT, good quality modified long-handled gouge knife must be used so that the tapper can stand on the ground and tap on the high panel. Other advantages of the knife are reduction in spillage due to a curved tapping cut surface (in spite of the tapping cut being inverted), ease in minimizing bark consumption and eliminating injury to cambium. The recommended length of the handle is 120 cm for tapping up to height of 160 cm from bud union, and 180 cm handle for tapping beyond that height. While tapping, active knife movements are made by the right hand and left hand only guides the knife. The left hand should not be raised above the shoulder height and right hand above the elbow during tapping. It is essential to undergo 2-3 hours training for 3-5 days in proper use of modified gouge knife. Bark above the CUT panel (above 2m) can be utilized for intensive tapping for 2-3 years before felling the trees.

                                                             Controlled upward tapping

नियंत्रित उद्धमुखी टापिंग

नियंत्रित उद्धमुखी टापिंग का मतलब है ऊपर में नियंत्रित हिसाव से टापिंग करना | जब ABCD पैनल काट कर ख़तम हो जायेगा तब साधारण रूप से CUT शुरू कर सकते है | LFT और CUT जब नया छाल में एक साथ करते है तब रबर का अर्थनीति जीवन को 40-45 सालों तक बड़ा सकता है | CUT से करीबन 30-50% तक उत्पादन मिल सकता है | ABCD पैनल बिना ख़तम होवे भी CUT कर सकता है | किन परिस्थिति में, CUT कर सकते है उसका पूरा विस्तित नीचे दी गयी है:
1. नया छाल से कम उत्पादन
2. नया छाल अच्छा से विकास नहीं हुवा, कोई बीमारी या टापिंग पैनल सुख गयी हो इत्यादि बजह से नया छाल टापिंग के लिए उपायुक्त नहीं है|
3. रबर का आर्थिक जीवन को बढ़ाने के लिए BI-2 पैनल(D पैनल) टापिंग पूरा होने के बाद
4. एक साथ नीचे और ऊपर पैनल को टापिंग के लिए जब C और D पैनल पर टापिंग होता है
CUT काट साधारण टापिंग पैनल का ऊपर यानि कुमारी छाल में किया जाता है | CUT का मार्किंग 45° स्लोप में लिया जाता है | C- पैनल पड़ टापिंग हो रहा हो तो इस अबस्था में अगर CUT करना है तो CUT का मार्किंग D पैनल की और लेना है | CUT काट में पेड़ को चार भाग(S4) करते है, जबकि साधारण टापिंग में दो भाग(S2) होते है |
CUT टापिंग कुमारी छाल में नविकीट छाल के टापिंग चैनल का ठीक ऊपर में मार्किंग किया जाता है |  ABCD पूरा पैनल अगर टापिंग कर के ख़तम हो गए तो CUT मार्किंग को  C- पैनल की और मार्किंग करना चाहिए | C पैनल पर अगर टापिंग हो रहा हो तो CUT मार्किंग BO-2 (B) पैनल की और करना चाहिए | इसका मतलब जिस साइड में टापिंग हो रहे होते है, उसका बिपरीत दिशा की और CUT करना चाहिए | CUT में वर्षा रोधक लगाना मुश्किक्ल है इसलिए नार्मल टापिंग को वर्षारोधक के साथ वारिस का मौसम में टापिंग करें और वर्षा जाने पर CUT कर सकते है | नार्मल टापिंग का मार्किंग में जैसे पेड़ को बराबर दो भाग (S/2) किया जाता है लेकिन CUT में पेड़ को 4 भागों में(S/4) बांटा जाता है | इसका स्लोप 45° में लेना है | साधारण रूप से दैनिक टापिंग करें तो एक पैनल में दो साल टापिंग कर सकते है, इसका मतलब चार पैनल में 8 साल उत्पादन मिलेगा | टापिंग अगर S/4 d3 में करें तो एक पैनल में  चार साल तक कर सकते है, सम्पूर्ण 16 साल तक उत्पादन मिलेगा | S/4 d4 में एक पैनल में पांच साल तक उत्पादन मिलता है | हलाकि S/3 d7 में भी टापिंग कर सकते है, और एक पैनल में 7 साल टापिंग कार्यकाल मिलेंगे | S/3 के लिए आप थोड़ा मध्यम साइज का पेड़ को ले सकते है | S/3 में हप्ते में एक बार काटने से एक पैनल में 7 साल तक उत्पादन मिलेगा, इसका मतलब तीन पैनल में 7×3=21 साल उत्पादन मिलेंगे | इस टापिंग पद्धति में चमरा काटने का मोटाई 2.5 मिली.मी होना चाहिए यानि साधारण टापिंग के साथ एक ही है |लेकिन महीना में एक बार टापिंग होने से 1 सेंटीमीटर करके चमरा को काट सकते है | cut को सरबूत्तम नियंत्रण से साथ किया जाता है | टापिंग के दौरान जितना हो सके कैंबियम को आघाट से बचाना चाहिए | "गौज" नाम की एक चाकू की मदद से टापिंग किया जाता है | चाकू का लम्बाई 120 सेंटीमीटर होता है और बड यूनियन से 160 सेंटीमीटर तक टापिंग कर सकता है |CUT दायी हाथ से नियंत्रण होता है और बाई हाथ खाली सपोर्ट के लिए है | टापिंग के दौरान दायी हाथ से ही चाकु को संचालन करना चाहिए और वाई हाथ खाली चाकू का दिशानिर्देश का कम करेगा | तीन से पांच दिन 2-3 घंटा CUT का अभ्यास करना चाहिए | CUT ख़तम होने के बाद इंटेंसिव टापिंग कर सकते है | CUT मैं बर्षारोधक का प्रयोग करना मुश्किल है इसलिए बारिस का मौसम मैं बेसल पैनल मैं टापिंग करें और विंटर सीजन मैं हाई पैनल का टापिंग करना चाहिए CUT का एक पैनल ख़तम होने के बाद अगला CUT का शुरू पैनल का डायना साइड मैं करना चाहिए |CUT मैं 5% उद्दीपक लेस एप्लीकेशन करके प्रयोग कर सकता है | उच्चा उत्पादन वाला रबर जाट मैं महीने मैं एक बार उद्दीपक करने से प्रयाप्त है, और मध्य उत्पादन वाला रबर जाट मैं तीन हप्ते मैं एक बार उद्दीपक चाहिए होगा | CUT और सप्ताह मैं एक दिन काटने से सर्दी मौसम मैं भी उद्दीपक प्रयोग कर सकता है लेकिन ज्यादा सुखपन मैं प्रयोग ना करें तो बेहतर है | अगर ज्यादा उत्पादन CUT पैनल से मिल रहा है तो उद्दीपक का जरुरत नहीं है |चार हिस्सों मैं बाटने वाला टापिंग का रोज काटनेवाला छाल का परिमान साधारण टापिंग यानि हाफ स्पाइरल टापिंग का साथ एक ही है | 

Intensive tapping 

साधारण तोर पर इंटेंसिव टापिंग बुड्ढा पेड़ पर किया जाता है पेड़ को काटने से कुछ साल पहले | CUT का पूरा पैनल काटकर ख़तम होने के बाद जहा पर अच्छा छाल होता है वहा उद्दीपक लगाकर टापिंग कर सकते है| इंटेंसिव टापिंग से हमें दो साल उत्पादन मिल जाता है |

High level tapping or Ledder tapping 




जब नवीकृत छाल मैं उत्पादन अच्छा नहीं होता है तब नया पैनल शुरू करके टापिंग कर सकते है, लेकिन इसका उच्चता बुड यूनियन से 2 मीटर ऊपर से लेना चाहिए |इस टापिंग के लिए एक लम्बा हैंडल वाला (ledder) चाकू चाहिए | इस टापिंग मैं समय का नुकसान होता है और टापिंग टास्क भी कम (150-180 trees) है |हलाकि इस टापिंग का आजकल प्रयोग नहीं होता है |















 

Monday, November 16, 2020

Tapping Harvesting

Tapping 

Tapping


Latex is obtained from the bark of the rubber tree by tapping. Tapping is a process of controlled wounding during which thin shavings of bark are removed. The aim of tapping is to cut open the latex vessels or to remove the coagulum which blocks the cut end of the latex vessels. Latex vessels are concentrated in the soft bast, the inner bark layer arranged in a series of concentric rings of towards the innermost region. The number, dimension and distribution of latex vessels and terconnecting vessels maximum being the proportion of hard bark show much variation from tree to tree in seedling population but not in budded trees of a clone. Variations do exist among clones.

टॉपिंग 

रबर पेड़ से रबर कि आक्षीर निकालने के लिए एक बिशेष चाकू कि साहेता से रबर पेड़ कि छाल को एक नियंत्रित हिसाब से काट कर आक्षीर निकलना कार्य को टैपिंग यानि दोहन कहा जाता है |

Standards of tappability 


Henry Niklash Ridly first tapping was teaching in Singapur Botanical garden. Budded plants are tappable when they attain a girth of 50 cm at a height of 125 cm from the bud union. Virgin panels and renewed panels are opened at the same height i.e. 125 cm. It is economic to begin tapping when 70% of the trees in the selected area attain the standard girth. It may take six to seven years to reach this state in the traditional rubber growing region and up to 10 years in non-traditional regions. In seedlings, the first opening for tapping is recommended at a height of 50 cm when the girth at that level is 55 cm. The height specified for opening subsequent panels is 100 cm. The best period to open trees for tapping is March-April. The trees left behind for want of sufficient girth may be opened in September. In the immature phase, mean annual girth increase is around 7 cm, as against 2 cm or less under tapping. Hence, trees with less than 50 cm girth should not be opened for tapping unless otherwise recommended separately.

टैपिंग सक्षमता 

"हेनरी निकलश रिडली" नाम का एक वैज्ञानिक ने पहली बार टैपिंग सिखाया था सिंगापूर का एक वनस्पति उद्यान में | बुड्डेढ पेड़ का परिधि जब 50 सेमी: हो जायेगा तब टैपिंग आरम्भ कर सकता है | बड यूनियन से 125 सेमी: ऊंचाई में पेड़ को मापा जाता है | 125 सेमी ऊंचाई में इसलिए लिया जाता है कि नाता या ऊँचा दोनों श्रेणी के लोग टैपिंग कर सकते है | सामान्य रूप से परिपक्व होने के लिए यानि उत्पादन होने के लिए 6-7 छाल लगता है | 70% परिपक्कता के उपर निर्भर करके एक रबर बागान को टैपिंग आरम्भ किया जाता है | अर्थनीति के तोर पर 70% पेड़ का परिधि 50 सेमी: हो गया तो टैपिंग के लिए वह बागान उपयोगी है | मान लीजिये एक रबर बागान में 300 पेड़ है और वह 7 छाल पूरा हो चूका है तब पहले हमें वहा पेड़ कि परिधि को देखना पड़ता है, उसके लिए अगर वह बागान में आपको 210 पेड़ का घेरा 50 सेमी: मिल गई तब आप टैपिंग कर सकते हो, लेकिन व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो 50 सेमी: का नीचे होने से मगर 45 से कम नहीं तब भी टैपिंग कर सकता है क्यूंकि बागान में अच्छा संरक्षण नहीं होने से कोई कोई बागान में 8-9 छाल में भी पेड़ 50 सेमी: परिधि प्राप्त नहीं कर पाते | 

                साधारण रबर पेड़ टैपिंग के लिए परिधि 55 सेमी: होना चाहिए| इसमें A-पैनेल को 50 सेमी: ऊंचाई में और बाद में B- पैनेल को 100 सेमी: ऊंचाई में लेकर टैपिंग किया जाता है, क्यूंकि साधारण रबर पेड़ों कि निचले हिस्सा बड़ा होता है और छाल मोटा और नरम होता है | साधारण पेड़ में आक्षीर का नलिका कम होता है इसलिए ज्यादा उत्पादन नहीं होता है | और एक दूसरा पद्धति है साधारण रबर पेड़ को मापने के लिए वह है कि आप प्रत्यक्ष रूप से 90 सेमी: ऊंचाई में भी टैपिंग कर सकते है,  ऐसा करने से बर्क-आइलैंड का सृष्टि नहीं होता है |

Marking, opening and flow of latex


The tapping cut of budded trees should have a slope of about 30° to the horizontal and for seedling trees only about 25°, since the fairly thick bark prevents spillage. A very steep cut leads to wastage of bark when tapping reaches the base of the tree and too flat a cut leads to overflow of latex from the cut. The slope should be marked annually using appropriate template. The latex vessels in the bark run at an angle of 3-5° to the right and therefore a cut from high left to low right will open more latex vessels. To avoid spillage, an inward slope is to be maintained on the tapping cut. In general, tapping on the basal 
panel is on half circumference (S/2) of the tree. It is desirable to divide the circumference into two equal halves in the first year of marking itself. Drainage area of latex is generally limited to an average of 70 cm towards the bottom, 40 em to the upper side and 5 cm from both ends of the tapping cut. The amount of latex exuded during a tapping needs to be regenerated fully in quantity and quality within the drainage area itself before the next tapping, and the time required for this is more than 48 hours in case of high yielding clones like RRII 105. When the tree is tapped and the vessel is cut, pressure at the location of the cut is released and viscous latex exudes. This exudation of latex results in the displacement of latex along the length of the latex vessel and laterally owing to strong forces of cohesion existing in the liquid phase. The resultant fall in pressure in the vessels leads to entry of water from surrounding tissues making the latex more dilute and makes the latex less viscous. Subsequent changes in the osmotic concentration in vessel damages lutoids present in latex. Damage of lutoids releases a protein named 'hevein' which forms cross link between rubber particles resulting in coagulation of latex at the cut ends of vessels. This leads to plugging of the vessels and cessation of latex flow. 


मार्किंग, आक्षीर का उद्घाटन और प्रवाह

मुकुल संगयूजक पेड़(बुड्डेढ) का टैपिंग कट यानि स्लोप 30° होना चाहिए और साधारण पेड़(सीडलिंग) का स्लोप 25° होना चाहिए | पेड़ को बड़ाबड़ दो भाग 125 सेमी ऊंचाई तक करना चाहिए |उनमे से पहली बार टैपिंग शुरू करने वाले भाग को A पैनेल कहा जाता है और दूसरी भाग को B पैनेल कहलाता है | A और B पैनेल को काट कर ख़तम होने के बाद फिर नया छाल निकलता है और उसे C पैनेल(A पैनेल का भाग में ) और D पैनेल (B पैनेल का भाग में) आक्षीर का नलिका रबर छाल का बांये उपर से दांये नीचे कि और 3°-5° कोण(angle) में रहता है, इसलिए टैपिंग भी बांये उपर और दांये नीचे से करता है | ऐसा करने से आक्षीर का नलिका ज्यादा काट जाता है और फलस्वरूप आक्षीर ज्यादा निकलता है | आक्षीर का जलनिकास क्षेत्र नीचे 70 से: मी: और उपर में 40 से: मी: तक सीमित रहता है और 5 सेमी: टैपिंग काट का दोनों साइड में रहता है |रबर पेड़ में चार स्तर  रहता है उनमे से एक है बाहर का छाल(आउटर बर्क) जो बाहर में रहता और पेड़ को ये रक्षा करता है, उसके बाद आएगा क्रम अनुसार कठिन छाल(हार्ड बर्क), नरम छाल(सॉफ्ट बर्क),  का नलिका(Vassels) नरम छाल (सॉफ्ट बर्क), केंबियम और लकड़ी(wood) | लेटेक्स का नलिका सॉफ्ट बर्क में ज्यादा रहता है, इसलिए टैपिंग का चाकू अंदर सॉफ्ट छाल तक जाना चाहिए नहीं तो लेटेक्स कम मिलेगी | टापिंग का काट हमेशा अंदर कि और ढलान होना चाहिए ताकि आक्षीर प्रवाहित समय साइड से आक्षीर ना गिरे | प्रतियोगिता वर्ष टेम्पलेट से मार्किंग करना चाहिए | 

Tapping depth, bark consumption and bark renewal

Latex vessels are concentrated near the cambium. Hence, high yield is obtained by tapping to a depth of less than one millimetre close to the cambium. However, for clones with very low virgin bark thickness, it is advisable to tap leaving at least 1.5 mm bark from cambium to avoid injury and wound reaction. But, too shallow tapping results in considerable loss of crop. Minor tapping wounds which heals in due course are permissible for medium and low yielding clones. On every subsequent tapping, a shaving of the bark along with the plugs of coagulated latex should be cut and removed. Bark regeneration is brought about by the activity of the cambium. The rate and extent of renewal are dependent on the genetic characters of the plant, fertility of the soil, climatic conditions, quality of tapping, tapping system, frequency and intensity, planting density and disease incidence. It is desirable to start tapping on renewed panel only after 10 years of opening.

टैपिंग कि गहरी, छाल काटने का परिमाण और छाल नवीकरण

लेटेक्स का नलिकाएं केंबियम के आस-पास रहता है, इसलिए ज्यादा आक्षीर मिलने के लिए केंबियम को एक मिलीमीटर से कम छोड़कर उतना गभीर तक टैपिंग करना चाहिए | टैपिंग अगर एक दिन के बाद एक दिन करेंगे तो छाल को एक बार में खाली 1.5 मिमी ही काटना चाहिए | लेकिन शैलो(shallow) टैपिंग से उत्पादन कम मिलता है, टैपिंग का चाकू अगर सॉफ्ट बर्क तक नहीं जाता है यानि सॉफ्ट बर्क में रहने वाला लेटेक्स नलिका को बिना कटे टैपिंग किया को शैलो टैपिंग कहा जाता है | और दीप(Deep) टैपिंग से भी बचना चाहिए नहीं तो नया छाल निकालने में रुकावट बन सकती है | केंबियम ने नया करके फ्लोएम कला और लेटेक्स नलिका का तैयार करता है और कोष का पैदा करता है और उसीसे नया छाल का सृष्टि होता है|नया छाल का बृद्धि निर्भर करता है भाजक कला या मेरिस्टमेटिक नाम कि कला के उपर और जात(क्लोन), जलबायु, मिट्टी का उर्बरता, टैपिंग का प्रणाली और बागान का रखरखाव उपर में | A-B पैनेल ख़तम होने के बाद C-D पैनेल में नया छाल आता है | पहली बार टैपिंग शुरू करने के 10 साल बाद नया छाल (renewed panel) में टैपिंग कर सकते है | अलग अलग अंतर में किया हुवा टैपिंग में छाल को कितना काटना चाहिए उसका एक टेबल नीचे दिया गया है, कृपया उसे देखे..


Bark consumption under different tapping frequencies

Time of tapping, Task and utensils 

Time of tapping, task and utensils Tapping should commence early in the morning as late tapping reduces the exudation of latex. Both 'Michie Golledge' knife used in India as well as the draw knife or 'Jebong' knife common in Malaysia are suitable for high and low level tapping and higher tasks. 'Jorwin' also known as "Manimooli' knife can be used more effectively in place of Michie knife as the tapper need not turn or knife need not be turned to tap front and back end of the cut in case of former. The knives should be sharp. The knives, cups, buckets, etc. should be cleaned well to prevent bacterial contamination and spoilage of latex. While fixing spout, care should be taken to fix it at half way mark of annual bark consumption (for effective protection of the cup by rainguard during monsoon). The tapping task (number of trees tapped on a day by one tapper) in India is 300- 400 trees. Headlights can be used for visibility during early morning tapping. Completion of tapping and latex flow in the early hours (02.00 to 6.00 hrs) is good for higher yield. It is particularly important during summer and in wind-prone areas.


टैपिंग का समय, कार्य और टैपिंग के सामग्रियां 


सूर्य उदय से पहले ही टैपिंग ख़तम होना चाहिए | रबर का पट्टा पेड़ का रसोई है, सूर्योदय के साथ साथ पेड़ का पट्टे में  प्रकाश संश्लेषण(Photosynthesis) शुरू होता है, पेड़ का बदन हिस्सा का पानी शोषित होने लगता है, इसलिए रात और सुबह में लेटेक्स नलिका और अन्य हिस्से में टर्गर प्रेशर(targer pressure) ज्यादा होता है और फलस्वरूप नलिका से आक्षीर ज्यादा निकलता है | दिन में पट्टे का रान्धे से पेड़ पानी निकाल देता है, जिसे प्रस्वेदन कहलाता है, और इसकी बजह से टार्गेर प्रेशर कम हो जाते है और फलस्वरूप लेटेक्स कम आता है, इसलिए हमें देर टैपिंग को वर्जन करना चाहिए |मार्किंग और टैपिंग के लिए जो सामग्रियां का जरूरत होता उसका एक लिस्ट नीचे दिया गया है..

1. टेप(Tap)


2. स्केल(Scal) -125 सेमी: 

3. मार्किंग चाकू(Marking knife)


4. टेम्पलेट(Tamplate)



5. रची(String)


6. प्लास्टिक कप(Plastic cup)


7. कप हेंगर (Cup hanger)



8. स्पॉउट(spout)


9. टैपिंग चाकुयें..
  (i) जैबोंग चाकू(Jebong knife)  


  (ii) मीचि गोल्लेज(Michi golledge knife)


  (iii) गौज चाकू(Gouge knife)


10. शार्पर(Sharper)


11. बांस का टोकरी(Bamboo busket)

Tapping systems


Response to different tapping systems varies from clone to clone. Trees of high yielding clones are to be tapped atleast on half spiral third daily (S/2 d3) system. Alternate daily tapping may be practised only for medium/ low yielding clones (RRIM 600, GT 1, PB 28/59 etc.). Low frequency tapping systems with appropriate yield stimulation is suitable to reduce cost of production and manage skilled tapper shortage to make rubber cost effective even under low price senerio.


टापिंग की पद्धति


टापिंग को दैनिक नहीं करना चाहिए, टापिंग को बिराम देकर ही करना चाहिए इसलिए इसे कुछ पद्धति के द्वारा किया जाता है I पेड़ की पुरे हिस्से को S1(spiral) कहा जाता है, जब हम मार्किंग करते है तब पेड़ को बराबर दो भागो में बता जाता है, तब इसे संक्षेप में S2 कहा जाता है I एक दिन का अंतर में टापिंग करेंगे तो इसे S2 D2 कहते है I ठीक इसी तरह दो दिन के अंतर में टापिंग करेंगे तो उसे S2 D3 कहलाता है I उच्च उत्पादन देने वाला रबर जाट को S2 D3 में काटना चाहिए लेकिन जो मध्यम या काम उत्पादन वाला जाटों को S2 D2 यानि एक दिन के अबधि में टापिंग कर सकते है I कम आवृत्ति या ज्यादा बिराम देकर टापिंग में श्रमिक दिन कम होता है इसलिए उत्पादन का खरसा घटता है I इसका दूसरा और एक लाभ यह है की DRC बने रहता है I

Low frequency tapping


Low frequency tapping (LFT) with stimulation can be practis to reduce the cost of production, increase productive life of trees and to manage the tapping labour shortage. The systems recommended are of d3, d4, d6 or d7 frequency. Trees under higher frequencies of tapping can also be converted to LFT. However, when such conversion is done there will be a temporary yield depression. To minimise the depression effect, conversion may be done during the low yielding months (February-April). Success of LFT depends on regular tapping throughout the year with application of yield stimulant at stipulated schedules for each frequency and clone. The stimulation schedule varies with clone from the first of tapping age of the tree, tapping system and frequency. Method of yield stimulation recommended is application of 2.5% ethephon on the panel (applied on recently tapped area just above the tapping cut to a width of 1.5 cm) in all the above cases, For high yielding clones like RRII 105 under third daily (d3) tapping frequency with weekly one day regular off (6d/7), three annual stimulation and under 7/d7 only two rounds are needed. The updated stimulation schedule recommended for different systems of tapping and clones under 6d/7 and 7d/7 are given in Table 9. The scheduled stimulation for April may be postponed to May/ June, if soil moisture is deficient.

          When tapping is done by the grower himself, weekly tapping with rainguard would be most appropriate as the effort will be minimal without compromise on production. In addition to tapping on all scheduled days under d6 or d7, removal of bark shaving @ 2.5mm/tap, and tapping upto the correct depth (0.5 to 1.0 mm near to cambium) in all tapping days, and yield stimulant application as per recommended schedule ensures optimum crop. Trees which have undergone higher frequencies of tapping for the initial two or more converting to weekly (d7) tapping, monthly stimulation may be followed. Benefit to tappers from low frequency tapping is substantially high through increased over- poundage in estate sector. Since the success of LFT depends on regular tapping throughout the year under the opted frequency, timely rainguarding and an additional miniguard fixed during August/September to prevent rainguard leakage during North-East monsoon is essential in the traditional region. In case of heavy rain in early morning, instead of skipping tapping on rainy days, delayed tapping on same day during South-West monsoon is desirable. Whenever tapping is not done due to absence of the tapper or a holiday, the field/ blocks scheduled for such day should be tapped on the next day. If not, there will be temporary reduction in yield due to longer interval between two tappings. For reducing scrap (field coagulum) percentage, delayed and if needed second collection of latex in the evening should be practised.
  

कम आवृत्ति टापिंग पद्धति


कम अबधि टापिंग में उद्दीपक का इस्तेमाल करके टापिंग कर सकते है| इसके द्वारा उत्पादन व्यय को घटा सकते है और उत्पादन का आयु लम्बा कर सकते है| इस पद्धति को उस इलेका में करिये जहा श्रमिक मिलना मुश्किल है | इसके लिए D3, D4, D6 और D7 में टापिंग होना जरुरी है | अगर आप ज्यादा आवृत्ति में टापिंग किया है तो उसे कम आवृत्ति टापिंग में बदल सकते हो, लेकिन इसमें थोड़ा समय (February-April) के लिए उत्पादन कम मिल सकता है | इसलिए इस पद्धति में उद्दीपक लगाकर उत्पादन बड़ा सकते है | उद्दीपक को पेड़ के जाट, आयु और टापिंग पद्धति के ऊपर देखकर इस्तेमाल किया जाता है | उद्दीपक को कुछ आवेदक पद्धति द्वारा दिया जाता है | पैनल एप्लीकेशन को 2.5% करके प्रयोग किया जाता है | इस एप्लीकेशन को टापिंग पैनल में ठीक टापिंग चैनल का ऊपर 1.5 सेंटीमीटर चौड़ा करके पेंटिंग ब्रास द्वारा प्रयोग किया जाता है | उच्चा उत्पादन वाला जाट जैसे अर अर आई आई-105 के लिए D3 में टापिंग होना चाहिए तभी इस्तेमाल कर पाएंगे | अगर d7 में टापिंग होता है तो साल में तीन बार इसे लगा सकते है | इसका एक अनुसूसी नीचे दी गयी है : -


यदि बारिस की बजह से टापिंग नहीं कर पाया तो उस थोड़ा देर से टापिंग कर सकते है | तप्पर का अनुपस्थिति में या अवकाश का दिन बजह से अगर टापिंग नहीं होता है तो ब्लॉक अनुसूसी हिसाव से अगले दिन वही ब्लॉक को टापिंग करें |
        यहाँ नीचे आपके लिए टापिंग और मार्किंग वीडियो का लिंक दी गयी आप देखे  click here 
                                          To be continued..


Tuesday, September 22, 2020

Method of soil & leaf sampling

DISCRIMINATRORY FERTILIZER RECOMMENDATION

Fertilizer recommendation based on soil and leaf analysis ensures site-specific fertilizer application for rubber and is the most ideal approach. It is desirable to assess the soil nutrient status before undertaking planting in nurseries or in main field, especially when the area is outside the rubber growing tract. Fertilizer recommendations based on initial soil analysis may be followed in the main field during the first four years, if the growth of plants is satisfactory. Discriminatory fertilizer usage based on soil and leaf analysis can be practised from fifth year onwards. In nurseries, the soil should be analysed once in three years. 

Method of soil sampling 




The samples collected should be a true representative of the area sampled. Collect samples two to three months after manuring. If there is uniformity in the nature of soil, lie of the land, manurial history, age of the rubber tree and growth of rubber and cover crop, one composite sample of soil and leaf would suffice for an area up to 20 ha. If soil and leaf samples are simultaneously collected, the suitable period is from August to October. But if soil sample alone is collected, the period between November and March is also suitable. Take composite soil samples at two depths, 0-30 and 30-60 cm. 

Select at random 5 to 15 spots (depending on the total area) and dig 60 cm deep pits at these spots. As it is necessary to ascertain the effect of past manuring on the fertility of the soil, locate pits at the site of past manure application. Do not sample road margins, labour line sites, cattle sheds, areas recently fertilised, marshy spots, or other non-representative locations. After removing the surface litter and mulch, cut a thin vertical section of soil from top to a depth of 30 cm using a sharp edged tool such as chisel. Pool all the samples of 0-30 cm depth from the different pits and mix well. If the size of the composite sample is large, reduce by quartering. For this, spread the well-mixed soil into a thin layered square on polythene sheet or newspaper. Divide the square into four equal squares and discard the soil in the diagonally opposite squares. Repeat thisp until about 500 g sample of soil is obtained. Prepare composite sample from 30-60 cm depth also in similar manner. Dry the samples under shade and pack them in clean cloth bags and never in manure-contaminated bags. Label each sample giving details of block sampled, depth of sampling and date of collection, and put the label in the bag. (Write the label with pencil and never in ink).


Method of leaf sampling

Leaf samples are collected during August to October period at the age of 6-10 months. Depending on the extent of area, select 10 (up to 5 ha) to 30 (above 20 ha) trees at random. For areas between 5 and 20 ha, select proportionate number of trees. In the case of branched immature trees and trees under tapping, collect four basal leaves from the terminal whorl of lower branches in shade from cach of the selected trees. Four basal leaves from spur leaves (small off- shoots with only one whorl from the trunk or main branches) are also suitable for sampling mature rubber. Branches with new flushes and leaves infected by diseases are unsuitable for sampling. Leaves formed during the onset of south -west monsoon are also not mature enough for sampling. Do not select trees affected by tapping panel dryness or root disease. In the case of unbranched young plants, select plants without new flushes, and collect four basal leaves from the topmost whorl. If 30 trees are selected, collect only the middle leaflet from each leaf. For 15 trees, collect the two leaflets on either side and 10 trees, collect all the three leaflets, so that about 120 leaflets would be available in one composite sample. Place the leaves between sheets of newspaper, and label each composite sample. Send the samples of soil and leaf to the Director, Rubber Research Institute of India, Kottayam-9, Kerala or any of the regional soil testing laboratories of the Board as early as possible. If it is not possible to deliver the leaf samples within 24 hours after collection, the samples may be dried by pressing with an electric iron heated to the temperature used for pressing cotton clothes. Along with the sample, also send the case history of the field represented by each sample.


Thursday, September 17, 2020

Fertilizer & Manuaring in rubber plant

Time and frequency of fertilizer application 

The efficiency of fertilizer usage depends on the time, frequency and method of application. Unless the fertilizers are applied at the right time in the right way the chances of losses are more. Fertilizers should be applied when there is sufficient moisture in the soil. However, heavy rainfall period should be avoided to minimize runoff and leaching losses. In the year of planting, fertilizer application is done 2-3 months after planting i.e. during September- October. In NE regions, if planting is done during April- May with polybag plants, the first round of application may be done two to three weeks after planting followed by the usual round in September-October. From second year onwards, the fertilizers should be applied in two equal splits during April- May (pre-monsoon) and September- October (post-monsoon) when there is enough moisture in the soil.





                             Rubber plant


Method of application

The method of application depends on the stage of growth of the plants. Young plants have only very limited root system in the initial few years. During the first year, fertilizers should be evenly distributed over a circular band of 30 cm all around the base of young plant, leaving about 7 cm from the base and slightly forked into the top 5 to 8 cm of soil. The plant bases should then be immediately mulched. The second application (9 months after planting) should be done in a circular band of 45 cm width leaving 15 cm around the plant base. The applications in subsequent years till the canopy of the rubber plants closes should be made in circular bands of steadily increasing width. Once the canopy closes, 5 to 6 years after planting, fertilizers should be applied in square or rectangular patches in between four trees and gently forked in. Where legume cover is present or where it has died out leaving a thick mulch, broadcasting in the inter-row areas can be resorted to. Deep pocket placement of fertilizers and application too close to the base of the trees should be avoided.

NPK fertilizers


खाद आबेदन कि बिधि 

रबर पौधों का आकार के उपर निर्भर करके खाद को प्रयोग किया जाता है | छोटा रबर पौधों का जड़ पहला कुछ साल तक  ज्यादा दूर तक नहीं फैलता है, इसलिए इस दौरान पौधों का चारों और वृत्त बनाकर खाद डाल सकते है | पहला वर्ष में पौधों से 7 सें:मी: दुरी में 30 सें:मी: वृत्त आकार से खाद का प्रयोग किया जाता है,  लेकिन ध्यान रहे कि पौधों का जड़ में खाद नहीं लगनी चाहिए | 5-8 सें:मी: तक थोड़ा मिट्टी को खोद का खाद को देना चाहिए और देने के बाद तुरंत आवरण देना चाहिए | उसके बाद द्वितीय खाद का प्रयोग 9 महीने के बाद करना चाहिए | द्वितीय वर्ष में पौधों का जड़ थोड़ा बढ़ जाता है, इसलिए 15 सें:मी: पौधों से छोड़ के 45 सें:मी: चौड़ाई वृत्त आकार से खाद का इस्तेमाल किया जाता है | जब तक पौधों ज्यादा बड़ा नहीं जाते है, इस तरह खाद का प्रयोग कर सकते है| लेकिन 5 साल से चार पेड़ों के बीज में वर्ग या आयताकार से मिट्टी थोड़ा खोदकर खाद का प्रयोग किया जाता है |  




Wednesday, July 22, 2020

INTERCROPPING IN RUBBER PLANTATION

Intercrop

Intercropping in rubber plantation रबर बगीचा  के बीच में अंत फसल

Rubber is planted at a wide spacing and hence sufficient land and light are available in the inter-row areas during the initial years for intercropping. Selection of intercrop should be made based on terrain of the land, light availability in the plantation and marketability.  


Guidelines for intercropping

Intercrops should be selected based on the slope of the land. On level and near-level lands (slope < 5%), any intercrop can be cultivated. In the slope range of 5 25%, intererops which require less soil disturbance should be selected. In steep slopes (> 25%) intercropping should be avoided and cover crops should be established. Tillage operations should be restricted to minimum while intercropping. 2. During the first two years any annual or short- term crop can be cultivated. From third year, light availability in the interspaces decreases and hence partially shade tolerant crops may be cultivated. If paired row planting system is adopted, intercrops can be cultivated throughout the gestation period. 3. Intercrops should be planted at least 1.5 m away from the base of rubber plant and this distance should be maintained during later years also. 4. Manures and fertilizers should be applied separately to rubber and intercrops. For manuring intercrops, the recommendations given by the Agricultural Department should be followed. 5. The residues of intererops should be retained in the field itself.

रबर खेत मैं अंतवर्ती फसल


कोई भी कृषि मूल खेत का उत्पादन ना घटाकर दूसरे एक फसल अंतवर्ती स्थानों को इस्तेमाल करके आय के रास्ता को खोलना ही अंतवर्ती फसल का मुख्य उदेश्य है ! रबर खेत मैं काफ़ी दुरी पर रबर पौधे को लगाया जाता है ! समतल क्षेत्रों मैं 15 फुट या 16 फुट दुरी पर और पहाड़ क्षेत्रों मैं 22×11 फुट की दुरी पर पौधे को रुपण किया जाता है ! प्रथम अबस्था मैं इस खाली जगहों मैं(रबर पौधे के बीज) सूर्य की किरण गिरते है,  इसलिए इस स्थानों पर अंतवर्ती फसल करना काफ़ी अच्छा होता है ! रबर खेत की अपरिपक्क कल 7 साल होता है!  लेकिन गरीब किसानों को इस दौरान कोई दूसरा आय की पथ नहीं होने की बजह से बहुत मुश्किल हो सकता है ! इसीलिए इस दौरान अंतवर्ती खेत करना बोहोत ही जरुरी होता है ! 

अंतवर्ती खेत की सुबिधाएँ 

सूर्य की किरण : कोई भी खेत के लिए सूर्य की किरण अत्यन्त आबस्यक उपादान है ! पहली अबस्था से लेकर तीन साल तक रबर खेत के बीज काफ़ी धुप स्थान होता है ! परीक्षा से पाया गया है की रबर बागीसा की अंतवर्ती स्थानों मैं पहली बर्ष 97%,  द्वितीय बर्ष 76% और तितीय बर्ष मैं 43% सूर्य की किरण पाया जाता है ! दूसरी और सप्तम बर्ष मैं ये धीरे धीरे घटकर 7% तक कम हो जाता है ! इसलिए पहली तीन साल अंतवर्ती खेत के लिए बोहोत ही फायदेमन है ! 

रिक्त स्थान : रबर बागीसा के बीज काफ़ी खाली जगह होता है ! यहाँ पहले ही बताया गया कि रबर पौधे को काफ़ी दुरी पर लगाया जाता है, इसलिए कोई भी कम दिन मैं होनेवाला फसल की खेत लगा सकता है! 
संरक्षित स्थान : रबर खेत का स्थानों को बांस या कांटा टार के द्वारा दिवार देकर संरक्षित किया जाता है,  इसलिए  यहाँ आसानी से कोई भी खेत कर सकता है और गाय-बकरी से भी सुरक्षित रहते है! 
देख भाल करना :अंतवर्ती खेत करने की बजह से किसानों को बागीसा मैं आना पड़ता है, जिससे रबर बागीसा भी साफ सूत्रा बना रहता है और साथ मैं उसी श्रम के जरिये कुछ आय भी हो जाता है! 
सु-बृद्धि : इस बात का प्रमाणित होवा है कि कुछ निर्वाचित फसल का खेत करने से रबर पेड़ों कि सु-बृद्धि मैं सहायक होता है! उदाहरण स्वरुप केला खेत करने से मिट्टी मैं जैवीक पदार्थ का बृद्धि होकर उर्बरता बढ़ता है! माह जाट कि फसल कि खेत से मिट्टी मैं नाइट्रोजन की परिमाण बढ़ती है! 
छाया स्थानों मैं होनेवाला फसल : बहुत ऐसे दवा कि फसल है,  जिसको सूर्य कि किरण कम जरूरत होता है और छाया मैं होता है! तीन साल के बाद कम किरणों मैं होनेवाला खेत के लिए उत्तम स्थान है! 

अंतवर्ती खेत की असुबिधायेंँ 

• ऊँचा खड़ा पहाड़ पर अंतवर्ती खेत करने से मिट्टी मैं होनेवाला खनन कार्य के लिए भूमि स्खलन होने कि आशंका रहता है!
• कोई कोई फसल ने जंगल की जानवरों को आकर्षित करता है, जैसे केला खेत से हाथी को बुलावा सकता है! 
• अंतरवर्ती फसल रबर पेड़ों के लिए रोग का कारक भी बन सकता है! 
• मिट्टी से खाद-पानी के लिए मूल फसल(रबर) का साथ प्रतियोगिता भी हो सकता है ! 

कैसा फसल निर्वाचित करें और कुछ जरुरी बिषय 

1. निर्वाचित किये जाने वाला अंतवर्ती फसल कम दिन मैं(तीन साल) ही परिणाम मिलने वाला, जंगल के जानवरों को आकर्षित न करने वाला और आसानी से बाजार मैं बिक्री होने वाला होना चाहिए! 
2. मिट्टी कि ढलान, फसल निर्वाचित मैं ध्यान देनेवाला एक अत्यंत जरुरी बिषय है!  साधारणत समतल जमीन या थोड़ा ऊँचा ढलान मिट्टी (5% ढलान) ज्यादातर अंतवर्ती फसल के लिए उपोयोगी है! यदि ढलान 5-25% कि अंतर्गत है तो कुछ निर्वाचित फसल ही कर सकते है और 25% से उपर कि ढलान,  खड़ा पहाड़ पर कोई भी अंतवर्ती फसल करना उचित नहीं है! 
3. अंतवर्ती फसलों को रबर पौधे से कमसे कम 1.5 मीटर दुरी पर लगाया जाना चाहिए, नहीं तो खाद-पानी के लिए प्रतियोगिता हो सकता है !
4. रबर पेड़ और अंतवर्ती फसल मैं अलग से खाद प्रयोग करना चाहिए ! 
5. अंतवर्ती फसल का साथ ही थोड़ा सा आवरण फसल भी करना चाहिए नहीं तो आवरण फसल से होनेवाला लाभ से रुकावट बन सकता है! 

सामन्य रूप से करनेवाला कुछ अंतवर्ती फसल :


केला खेत : केला एक लाभदायी खेत और इसका बाजार अच्छा है! पहली तीन साल मैं रबर बागीसा के बीज केला का खेत कर सकता है अगर उस क्षेत्रों मैं जंगली हाथी की वास नहीं है तो !  प्रथम बर्ष मैं प्रति हैक्टर मैं 1200 केला का पौधा लगा सकता है ! इसे द्वितीय बर्ष मैं घटाकर 600 करके और तितीय बर्ष मैं 450 पौधे ही खाली रखना चाहिए! 
अनानास का खेत : अनानास का खेत रबर बागीसा के बीज बोहोत ही लोकप्रिय है! प्रति हैक्टर मैं 13500 अनानास का अंकुर लगा सकता है! 

 अदरक और हल्दी का खेत : समान मिट्टी या थोड़ा झुकाव मिट्टी मैं ही अदरक और हल्दी का खेत करना चाहिए क्यूंकि इसके लिए मिट्टी को खोदन पड़ता है,  जिससे भूमि स्खलन होने का सम्भब रहता है! इस खेत के लिए काफ़ी जैवीक खाद का जरूरत होता है! 

सब्जियाँ का खेत : बार्षिक अस्थायी खेत जैसे कोमोरा,  मरिसा, भिन्डी, केरला आदि  पहली दो साल मैं कर सकते है !लेकिन लहि का खेत नहीं करें क्यूंकि इससे पाउडरी मिल्डयु रोग का संक्रमक हो सकता है ! सिमलु आलू भी नहीं लगाना चाहिए क्यूंकि इससे भी सोहा को आकर्षित करता है ! 

दवा का खेत : रबर बागीसा मैं तीन साल के बाद छा होता है क्यूंकि रबर पेड़ का पट्टा- डाली बड़ा होने लगता है,  इसलिए छां को सहन कर सकने वाला कुछ ओसधि का खेत कर सकता है,  जैसे स्ट्रोबिलान्थस हैनीअनुस, आड़थोड़ा वसीका आदि का प्रजाति रबर खेत के बीज कर सकते है! इलाइसि का खेत भी इस दौरान सर सकते है, क्यूंकि इसमें भी कम छाया का जरुरत होता है ! बाजार मैं आसानी से बिक्री होनेवाला प्रजाति का ही निर्वाचन करें इस खेत के लिए! 
        साधारण तोर पर अंतवर्ती फसल का अबस्यकता और व्यावसायिक तोर पर गौर करें तो ये क्षुद्र किसानों के लिए ही लाभदायी है, क्यूंकि अपना श्रम के द्वारा उपलब्ध सुबिधा से अपरिपक्क के दौरान प्रथम हिस्सा मैं कुछ आय कर सकते है और बागीसा का देख भाल करना भी आसान होता है ! लेकिन बड़े किसानों को इस खेत के लिए ज्यादा मजदूर कि अबस्यकता होगा और रबर खेत मैं होनेवाला घास-जंगल को नियंत्रण तथा मिट्टी का उर्वरता बृद्धि के लिए आवरण फसल ही ज्यादा बेहतर होता है! लेकिन कभी कभी देखा जाता है कि क्षुद्र किसान अंतवर्ती फसल को तीन साल के बाद भी रख देता है,  जिसके फलस्वरूप रबर पेड़ का बृद्धि मैं रुकावट होता है ! सामान्य आय के लिए ऐसी कार्य करना उचित नहीं है ! हमारे उत्तर-पूर्व मैं ज्यादातर पहाड़ क्षेत्रों ही है, इसलिए अंतवर्ती फसल का निर्वाचन सावधानी से करें ! 
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                                               to be continued...

Thursday, June 25, 2020

RUBBER CULTIVATION, PLANTING

Rubber planting Methods रबड़ खेत करने की तरीके और उपचार के मै नीचे दिए गये है कृपया देखे..

Vacancy filling

Maintaining the full stand by replacing casualties and weak plants with suitable advanced planting material should be one of the priority areas during early upkeep. 

Pruning छंटाई

When budded stumps are planted, the vigorous sprout arising from the bud patch alone is allowed to grow, False shoots sprouting from the stock should be removed. Pruning of side shoots that arise up to a height of 2.5 m from the ground also should be done as branching is not desirable up to this height. 

Mulching, shading, irrigation and whitewashing 

The soil around the plants should be mulched properly with cessation of rains to conserve soil moisture, maintain optimum soil temperature and control weed growth. Mulching acts as an effective soil conservation measure and adds to the fertility of soil. Dried plant materials or plastic can be used as mulch. Polypropylene woven fabric acts as good mulch material for young rubber plants, especially in dry areas. Young plants during the year of planting are provided with artificial shade during summer with plaited coconut leaves or gunny bags. Contact shading (spraying of leaves with 10% china clay) of young rubber plants is also beneficial in reducing the radiation effect and transpiration loss. Life-saving irrigation during summer reduces casualty. From the second year onwards, brown portion of the main stem is whitewashed using lime or china clay to prevent sun scorch till the canopy develop partial shade. 

Branch induction

The rubber plants should produce branches at a height of 2.5-3 m to achieve high rate of growth. If branches are not produced naturally at this height, branching should be induced allowing a few lateral buds to develop through leaf cap or leaf folding method. 

COVER CROP 

Cover crop


Cover crops are established and maintained in rubber plantations for conserving soil and improving soil structure and fertility. Fast growing leguminous creepers, having the ability to fix atmospheric nitrogen are widely used as cover crops in rubber. In addition, they have other attributes common to all cover plants like ability to suppress weed growth and reducing soil temperature. 

Establishment of cover crops 

Seeds of cover crops have very hard seed coat which delays or inhibits germination. Therefore pre-sowing treatment is done to ensure uniformity and higher percentage of germination (Table 2). Cover crops are to be established in new plantings immediately after clearing the area and in replanting one year ahead of planting if possible, or after felling the old stand of rubber. Either seeds or cuttings may be used. Fresh cuttings, two or three feet long should be planted when frequent rains are available. If seeds are used, the pre-treated seeds should be mixed with equal quantity of rock phosphate and sown in rows or in equidistant patches between the plant rows during May after pre-monsoon rains. The young cover plants in patches should be protected from weeds for four to five months. Cattle grazing and cutting away of the crop for fodder purpose should be avoided.
                 
                   Manuring of cover crop Manuring of cover crop helps in establishment, easy maintenance and efficient nitrogen fixation. Application of 165 kg of powdered rock phosphate (18% P05) per hectare in two equal splits, the first, one month after sowing and the second, two months after the first application is recommended. In areas where the soils are deficient in available potassium, along with rock phosphate, 50 kg of muriate of potash also should be added. It is enough to broadcast the fertilizer on the strips where the cover crop is planted. 

Control of cover crop

Cover crop


Cover crop should not be allowed to grow in plant bases twining on rubber plants. Mucuna can effectively be controlled by spraying 2,4-D 1.00 kg a.i./ha. 


Common caver crops grown in rubber plantations and their characteristics

 1. Pueraria phaseoloides

A twiner - cum creeper that can be propagated by seeds and cuttings. Palatable to cattle. The plant grows vigorously and smother weeds. Dries up during summer and regenerates during following monsoon. The seed rate is about 3-4.5 kg/ha.
Hot water treatment 

2. Mucuna bracteata

A very fast growing drought resistant cover crop from NE India. It is comparatively shade tolerant and not usually eaten by cattle. Fruit set is not seen in Kerala, however normal fruit set is reported in Tripura. The seed rate is about 200 g/ha. Stem cuttings can also be used for propagation, but the percentage success is low.

3. Calopogonium mucunoides

Native of Tropical America. It is a twiner and creeper with tolerance for poor soils. The legume dies off during dry months. It is a prolific seeder, seed rate is 3-4.5 kg/ ha.

4. Centrosema pubescens

*     Soaking seeds in hot water at 60 80°C for four to six hours
**   Soaking seeds in concentrated sulphuric acid followed by thorough washing
*** Mixing seeds with sand (one to two times its quantity) and grinding gently in a mortar or rotating in drums lined with sand paper or scratching seeds (especially for M. bracteata) on a sand paper or rough cement floor on the side opposite to the seed-attachment scar followed by overnight soaking in water

WEED CONTROL

Weeds are undesirable vegetation which suppress growth of young rubber by competing for nutrients and soil moisture especially during of weed management initial years.The concept of weed management in rubber plantation is to manage the weeds in such a way that they do not adversely affect the growth of rubber. Complete eradication of the entire weed flora from the field is not envisaged. years.Weeds can be controlled by manual, chemical (using herbicides) or mechanical (using weed cutters) methods. Manual weeding and herbicide application can also be done in rotation for effective weed control which provides better environmental safety.


Immature rubber 

The establishment of legume ground cover in the plantations will eliminate the growth of weeds in the interspaces. Therefore, weeding in the entire area is important during the initial one or two 
year period only. Four to five rounds of manual weeding are required during the first two years. During subsequent years, weeding can be restricted to plant basins or planting strips (contour terraces) with selective weeding of noxious and bushy weeds in the interspace. After 4th year, weed growth usually will not be a serious problem because by that time the rubber plants would have dominated in the association with a closed canopy. Therefore, weeding need year be carried out only in planting strips from 5th onwards.


Mature rubber

In mature plantations, weeds appear depending on availability of sunlight. Unlike in the case of immature rubber, no competition exists between mature rubber trees and weeds. Weeding in mature plantations should not be for beautifying the plantation, but only to facilitate free movement of tappers.

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                                                                                                                                 to be continued...

Wednesday, June 10, 2020

Rubber Cultivation stumps

PLANTING MATERIELS रोपण सामग्री

The generally used planting materials are seedling stumps, budded stumps, polybag plants and root trainer plants, Tissue eultoure plants are used only for research purposes.

STUMPS 

Seedling stumps are prepared by pulling out polyelonal seedlings and cutting bak the stem at 45 to 60 cm of brown wood, tap root to convenient length and trimming of lateral roots (7,5 cm length), The cut end of stem is dipped in molten wax to prevent water loss. Budded stumps are prepared in the same way as seedlings stumps but a slanting cut with slope towards opposite side of bud is given at about 7,5 cm above the bud patch. Wax scaling and root trimming are done similar to seedling stumps. For green-budded and young-budded plants the cut made 15 to 20 cm above the bud patch leaving longer snag to prevent die back.

POLYBAG PLANTS  पॉलीबैग का पौधा


Polybag nursery

Polybag plants are raised either by budding seedlings that are developed by in situ planting of seeds (in polybags) or by planting budded stumps in polybags. Polythene (LDPE/HDPE) bags of 45 x 18 cm holding about 7 kg soil are generally used. Larger bags, 55 x 25 cm, which holds about 10 kg soil are preferred for raising larger plants (3 whorls or more). The polythene material used for the bag should be of 75-100 micron thickness (300-400 gauge). The bags should be filled with top soil which is rich in organic carbon for efficient water and nutrient supply to the plants, About 20 to 25 g rock phosphate is incorporated in the top half of the soil filled in the polybags. The filled polybags are stacked in trenches (30 cm deep) or on soil surface itself with sufficient support. Stacking by leaving a space in between every two rows favours better growth as the buds can be arranged to face the inter spaces. This also cultural operations. Budded stumps/ allows easy seeds are planted after the soil in the bags settles down. Dipping of root portion of budded stumps in cow dung slurry or 500 ppm IBA before planting enhances root development. Monthly application of the fertilizer 10:10: 4:1.5 NPKMg mixture at 10 g/plant initially, gradually increasing up to 30 g/plant, when each top whorl of leaf is mature is recommended. Regular watering and weeding is necessary. Partial shading (50% shade) during dry season reduces incidence of leaf spot diseases and sun scorch besides regulating transpiration loss. Plants are transplanted to the main field when they are at two to three whorl stage and the top whorl of leaves is mature.

ROOT TRAINER PLANTS   रूट ट्रेनर प्लांट

The root trainer containers usually used have a length of 26 cm and holding capacity of 600 cc with a tapering shape with vertical ridges on insideroc wall and a drainage hole. Well-cured coir pith length of 26 cm and holding capacity of 600 cc with mixed with neem cake, bone meal, pesticides and single super phosphate is used as potting medium. Curing of coir pith is done by keeping it immersed in water in a tank for a minimum period of two months with draining and refilling of water at fortnightly intervals to leach out the phenolic toxic compounds. Partially dried elephant dung mixed with equal quantity of soil can also be used as an alternative to coir pith. The potting medium should be packed well inside the root trainer cup before planting germinated seeds. If stumps are planted, compacting of medium is done along with planting. 
        
       The root trainers are stacked by pushing them into a raised bed of soil taking care that the drainage hole is not clogged. The developing tap root grows into the soil through the drainage hole. When the plants show healthy growth, the root trainer is lifted from the bed, the root pruned close to the drainage hole and stacked on stands made of iron or bamboo splinters so that the without touching the soil. plants in the containers remain suspended in air without touching the soil. Although the tap root resumes growth, it undergoes natural air pruning at the drainage hole. This stress induces emergence of large number of lateral roots into the potting medium. The ridges on the side wall of container directs these lateral roots down which in their turn also undergoes air pruning. Thus the hardened root trainer plants will have a tap root and well- oriented lateral roots forming a dense root plug.
       
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                                                  to be continued...