Tuesday, December 24, 2019

Rubber cultivation

Bud wood nursery

Rubber plant

Bud wood nursery is raised by planting polybag plants or budded stumps of authentic planting materials of desired clones at a spacing of 90 60 cm for collecting brown budwood and 90 x 90 cm for green budwood. Before planting, bud wood nurseries are given a basal dose 165 kg of powdered rock phosphate per hectare (1.65 kg/ 100 m), Two to three months after planting, 125 g of 10-10-4-1.5 NPKM mixture per plant is applied. A second application at the same rate is given 8 to 9 months after planting.should also be appliest 2-3 months after each harvest of bud wood.The first harvest of brown budwood is done one year after planting by cutting the shoot 30 cm above the bud union. Two srouts are allowed to grow for the second harvest after simitar growth This process of cutting back each healthy shoot i to be repeated every year to allow regeneration of fresh bud wood. The harvested bud wood is cut into pieces of convenient length (usually Im). One metre of brown bud wood yields 15-20 buds. Only buKds from axils of fallen leaves are used. Clipping off mature leaves 7 to 10 days before harvest of bud wood helps in activation of axillary buds. The bud wood is labelled soon after removal from bud ends are dipped in molten waxN to prevent loss of wood plants to avoid mix up of clones. The cut water and drying up. Bud wood should be utilised for budding soon after collection. For short distance transport, it should be covered in banana sheath. If packed in saw dust with 20 % moisture, bud wood can be kept viable for up to two weeks.

Green bud shoots are generated by cutting back the growing shoots in a bud wood nursery 6 to 8 weeks before bud grafting. Only the scale buds on fresh shoots are used. Each shoot yields 4 to 6 buds. Green bud shoots are harvested early in the morning and used immediately. The shoots are packed in moist saw dust for transport. Such material should be used within 3 to 4 days. Peeling of buds is best when the top whorl of brown bud wood is fully open and dark green in colour. For green bud wood, the leaves on bud shoot should be between brown stage to fully open stage for good peeling.


बडवुड नर्सरी 


बसवूद नर्सरी की हरे रंग के बडवुड और लिए 90 x 90 सेमी और भूरे रंग बडवुड के लिए 90 x 60 सेमी के अंतर पर पॉलीबैग पौधों या वांछित क्लोन के प्रामाणिक रोपण सामग्री के बुड्डेढ स्टंप लगाया जाता है। रोपण से पहले, बडवुड नर्सरी को बेसल खुराक 165 किलोग्राम पाउडर रॉक फॉस्फेट प्रति हेक्टेयर (1.65 किग्रा / 100 मी) दिया जाता है, रोपण के दो से तीन महीने बाद, 125-10 ग्राम 10-10-4-1.5 एनपीकेएम मिश्रण प्रति पौधा मै प्रयोग किया जाता है! 

रोपण के 8 से 9 महीने बाद उपोरुक्त दर पर दूसरा खाद प्रयोग किया जाता है।  मुकुल संघ के ऊपर मुकुल की कास्ट  की प्रत्येक फसल के 2-3 महीने बाद यह खुराक भी उपयुक्त होनी चाहिए।  सिमिट ग्रोथ के बाद दूसरी फसल के लिए दो सरोतों को उगने दिया जाता है।  ताजा कली की लकड़ी के पुनर्जनन की अनुमति देने के लिए प्रत्येक स्वस्थ शूट को वापस काटने की यह प्रक्रिया हर साल दोहराई जानी है।  कटी हुई कली की लकड़ी को सुविधाजनक लंबाई (आमतौर पर इम) के टुकड़ों में काटा जाता है।  एक मीटर भूरी कली की लकड़ी से 15-20 कलियाँ निकलती हैं।  गिरे हुए पत्तों के कुल्हाड़ियों से केवल कलियों का उपयोग किया जाता है।  कली की लकड़ी की कटाई से 7 से 10 दिन पहले परिपक्व पत्तियों को छोड़ देने से एक्सिलरी कलियों के सक्रिय होने में मदद मिलती है।  कलियों के मिश्रण से बचने के लिए लकड़ी के पौधों के नुकसान को रोकने के लिए कली के सिरे से हटाने के बाद कली की लकड़ी को जल्द ही लेबल कर दिया जाता है।  कटा हुआ पानी और सूख रहा है।  बुड लकड़ी का उपयोग संग्रह के तुरंत बाद नवोदित के लिए किया जाना चाहिए।  कम दूरी के परिवहन के लिए, इसे केले के म्यान में कवर किया जाना चाहिए।  यदि 20% नमी के साथ देखा धूल में पैक किया जाता है, तो कली की लकड़ी को दो सप्ताह तक व्यवहार्य रखा जा सकता है।


Thursday, November 28, 2019

Rubber cultivation, Stump, polybag nursery

Seedling Nursery

Rubber nursery
Level lands with water table at least 60 cm below is ideal for raising seedling nursery. On slopes, nursery beds can be made along the contours. As sunlight is essential, shaded areas should be avoided. Soil should be deep, well- drained loam with good fertility status. Soil should be dug up to a depth of 75 cm and all stumps and stones removed, Raised beds (15 cm) should be prepared with width of 60 to 120 cm and convenient length. Pathways to facilitate cultural operations and drainage facilities should be provided in between the beds. The spacings adopted for planting in seedling nurseries are 23×23 cm (for green budding) and 30×30 cm (for brown budding). The planting rows at the specific distance is marked on either ends of the bed and a long cord with planting distance marked on it is stretched across the row marks. Germinated seeds are planted at each planting distance mark on the cord. One hectare of nursery land can accommodate around 75000 seedlings. With periodic thinning and 80 % budding success, about 50000 budded stumps will be available for planting. Only healthy and vigorously growing plants should be allowed to grow in the nursery. All weak plants should be removed as early as possible. Such culling should be done at fortnightly intervals.

Application of a pre-emergent herbicide like diuron at the rate of 2.5 kg in 700 L of water per effective hectare if applied after preparation of beds prevents weed growth for 6 to 7 weeks. Manual weeding should be done at monthly intervals. Mulching in between the plant rows reduces weed growth besides conserving soil moisture and regulating soil temperature. Dried grass, undergrowth from forests, dried cover crop material, etc. can be used for mulching. Mulching should be done soon after the rainy season to conserve soil moisture.

Addition of 25 kg of compost or dried cattle manure and 4 kg of rock phosphate for every 100 m2 of nursery bed is recommended as basal dressing, When same area is repeatedly used, rock phosphate needs to be applied only once in three years. Application of 275 kg urea, 780 kg rock phosphate, 85 kg muriate of potash and 235 kg of magnesium sulphate or 1255 kg of 10-10-4-1.5 NPKMg mixture and 118 kg of magnesium sulphate per hectare after 6 to 8 weeks from planting is recommended.After 6 to 8 weeks from first application urea may be applied at the rate of 275 kg/ha before mulching. Zinc sulphate at the rate of 25 kg/ha may be applied if necessary, two weeks after the fertilizer application. Plant protection by regular spraying of fungicides and insecticides will be necessary to prevent disease/insect pest damage. Regular spraying of 1 % Bordeaux mixture prevents wet season diseases. Mancozeb 0.2 % is sprayed to control leaf spot diseases. Other pesticides also can be used selectively at recommended dosages Shading also is essential to protect the plants from sun scorch. Partial shade of 30 to 50 % using shade nets, coconut fronds etc, is recommended. Irrigation will be essential if soil moisture is low. Daily watering may be preferred initially. Later frequency of irrigation can be reduced to once in two to three days. Summer irrigation helps to increase dry matter production and healthy growth of seedlings. When sufficiently grown, seedlings can be used for budding.

बीज नर्सरी

अंकुर नर्सरी को बढ़ाने के लिए कम से कम 60 सेंटीमीटर नीचे की जल स्तर वाली भूमि उपयुक्त है। सूरज की रोशनी आवश्यक है बीज नरसरी के लिए, छायांकित क्षेत्रों से बचा जाना चाहिए। बेदिका को जब बनाते हैं मिट्टी को 75 सेंटीमीटर की गहराई तक खोदना चाहिए और मिट्टी को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए कोईभी पत्थर बगेरा नहीं रहना चाहिए और बेदिका को मिट्टी से 15 सेन्टीमीटर्स उठाकर बनाना चाहिए ! 60 से 120 सेमी की चौड़ाई और सुविधाजनक लंबाई के साथ बेदिका को तैयार करना चाहिए।  बेदिका के बीज रास्ता रखना चाहिए ताकि पानी देने के लिए सुबिधा हो ! अंकुर नर्सरियों 23 x 23 सेमी (ग्रीन बडिंग के लिए) और 30 x 30 सेमी (ब्राउन बडिंग के लिए) की दुरी पर बीज को रोपण करना चाहिए हैं।  इस तरह से एक सही माप लेने के लिए एक रची की मदद ली जा सकती हैं, पहले रची  को विशिष्ट दूरी (उपर मै दिया गया हिसाब मै) रची मै निसान लगा लेना चाहिए उसके बाद बेदिका की एक माथा से दूसरी माथा तक खीचकर रची को बेदिका की उपर डालकर बीजों को रोपण किया जा सकता हैं !  एक हेक्टेयर नर्सरी भूमि में लगभग 75000 अंकुरित बीज रोपण किया जा सकते हैं। अगर उनमे से 80% भी मुकुल संजुजन सफलता हुई तों 50000 मुकुल संजुजित पौधे रबड़ खेत के लिए उपलब्ध  होंगे। केवल स्वस्थ और अच्छी पौधे  को रखकर बाकि को निकाल देना चाहिए। सभी कमजोर पौधों को जल्द से जल्द हटाया जाना चाहिए। 

अंकुर बेदिका की तैयारी के बाद लागू होने पर प्रति हेक्टेयर के लिए 700 लीटर पानी में 2.5 किलोग्राम की दर से डाइयुरॉन मिलाकर प्रयोग करना चाहिए ! ये देने से जंगली घास 6 से 7 सप्ताह तक की वृद्धि को रोकता है।  मासिक अंतराल पर सफाई किया जाना चाहिए। पौधे की पंक्तियों के बीच में सूखे पट्टे से ढाकना चाहिए तब मिट्टी की नमी को संरक्षित और मिट्टी के तापमान को नियंत्रित रखता हैं उसके अलावा जंगली घाँस की वृद्धि कम हो जाती है।  सूखे घास, सूखे पट्टे और सूखे कवर फसल आदि का ढाकने ने के लिए उपयोग कर सकता है।  मिट्टी की नमी को संरक्षित करने के लिए बरसात के मौसम के तुरंत बाद मल्चिंग(Mulching)  किया जाना चाहिए। 
नर्सरी की स्थापना से पहले खाद प्रयोग  के लिए एक तालिका तैयार करने की आवश्यक है प्रत्येक जगग के लिए! नर्सरी बेड के प्रत्येक 100 वर्ग मीटर के लिए 25 किलोग्राम खाद या सूखे मवेशी खाद और 4 किलोग्राम रॉक फॉस्फेट की जरूरत है, जब एक ही क्षेत्र का बार-बार उपयोग किया जाता है, तो रॉक फॉस्फेट को तीन साल में केवल एक बार लागू करने की आवश्यकता होती है। रोपण से 6 से 8 सप्ताह बाद 275 किग्रा यूरिया, 780 किग्रा रॉक फॉस्फेट, 85 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश और 235 किग्रा मैग्नीशियम सल्फेट या 1255 किग्रा (10-10-4-1) एन.पी.के का मिश्रण और 118 किग्रा मैग्नीशियम सल्फेट प्रति हेक्टेयर मै प्रयोग करें! 6 से 8 सप्ताह बाद यूरिया 275 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग  किया जाना चाहिए मल्चिंग से पहले। यदि आवश्यक हो तो खाद आवेदन के दो सप्ताह बाद 25 किग्रा / हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट लगाया जा सकता है। पौधे को रोग और कीट से बचाव के लिए फफूंदनाशकों और कीटनाशकों के नियमित रूप से इश्तेमाल करना चाहिए। 1% बोर्डो मिश्रण का नियमित छिड़काव करें गीला मौसम रोगों को रोकने के लिए। "लीफ स्पॉट" नाम की  रोगों को नियंत्रित करने के लिए मैनकोजेब 0.2% का छिड़काव करना  चाहिए। अन्य कीटनाशकों का भी उपयोग कर सकते है! पौधों को धूप से बचाने के लिए छायांकन भी आवश्यक है। शेड नेट, नारियल के पट्टे आदि का उपयोग करके 30 से 50% की आंशिक छाया की इंतजाम किया जा सकता है। मिट्टी की नमी कम होने पर सिंचाई जरूरी होगी। शुरू में दैनिक पानी दे सकता है। बाद में सिंचाई की आवृत्ति दो से तीन दिनों में कम हो सकती है। ग्रीष्मकालीन सिंचाई शुष्क पदार्थ उत्पादन और पौध की स्वस्थ वृद्धि को बढ़ाने में मदद करती है। जब पर्याप्त रूप से उगाया जाता है, तब पौधे को मुकुल संजुजन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

रबर पौधा पालीथीन बैग मैं डालना : 
रबर पौधा को पॉलीबैग बनाकर रुपण करने से अपरिपक्क अबस्था घटता है | पौधों को पॉलीबैग मैं डालने का क्या क्या लाभ होता है नीचे दिए गये है..
(¡) अपरिपक्क अबस्था कमसे कम एक साल कम करना | एक साल नर्सरी मैं ही बड़ा होने के रखता है | 
(¡¡) कमजोर और अनुपयोगी पौधों को नर्सरी मैं ही बर्जन करना |
(¡¡¡) एक आकार का पॉलीबैग को रुपण करने से रबर बागीसा मैं पौधों का आकार बराबर से वृद्धि होंगी | 
(iv) बागीसा मैं कुछ पौधे अगर वृद्धि नहीं हो रहा है या मर जाने से जो रिक्त स्थान होता है, उसको तुरंत पूरा कर सकते है | 
पहले ज़माने मैं किसान बुड्डेढ स्टंप को बागीसा मैं गाड़ा खोदकर प्रतक्ष्य रूप से रुपण किया जाता था | लेकिन इन परिस्थितियों मैं किसानों का बोहोत असुबिधाये होती थी, जैसे पौधों का मुकुल से कली नहीं निकला हुवा पौधों को हटाना और समरूप से पौधों नहीं होना इत्यादि | इसके आलावा प्रतक्ष्य रूप से रुपण कि सफलता निर्भर करता है मौसम का अनुकूलता का उपर और पौधों का स्वस्थ होने पर | 

पॉलीबैग और इसका आकार : 
किस अबस्था मैं पौधों को रुपण किया जाता है, उसका उपर पॉलीबैग का आकार निर्भर होता है | 
(i) दो स्तर वाली डाली की  पौधों के लिए 45×18 से: मी: 300-400 गेज मोटा बैग का जरूरत है | इस पॉलिथीन बैग मैं लगभग 7 कि: ग्राम मिट्टी डाल सकते है | इस पौधों को अधिकतम चार महीने तक रख सकता है | 
(ii) तीन या चार स्तर वाली डाली कि पौधों के लिए 55×25 से: मी:, इसमें 400 गेज मोटा बैग कि जरूरत है | इसमें लगभग 10 कि: ग्राम मिट्टी भरा सकते है | इस पौधों को छे महीने तक रख सकते है | 
(iii) 6 स्तर वाली डाली की पौधों के लिए 60×30 से: मी: और 500 गेज मोटा बैग का जरूरत है | इस पौधों को 9 महीने तक बैग मैं रख सकते है | 
एक पॉलीबैग मिट्टी के साथ 18-20 कि: ग्राम तक हो सकता है| उत्तर-पूर्वांचल के पहाड़ स्थानों मैं लेकर जाना बोहोत मुश्किल है, इसलिए ले जाने कि सुविधा के लिए छोटा आकार बैग ही बेहतर है | पॉलीबैग का नीचे कि और लगभग 20 छेद रखना चाहिए, ताकि अतिरिक्त पानी निकाल सके | साधारण रूप से LDPE से तैयारी और काला रंग का पॉलीथिन ही इस्तेमाल होता है | 
पॉलीबैग के लिए स्थान निर्वाचन :
पॉलीबैग नर्सरी हो सके तो बागीसा का सामने करना चाहिए | धुप गिरना, खोला जगह, समान मिट्टी और जहाँ पानी जमा होने कि आशंका नहीं है वहाँ पॉलीबैग नर्सरी के लिए निर्वाचन कर कर सकते है | बांस या काटा तारों से दीवाल देना चाहिए | नर्सरी मैं पानी कि मजूदि आबश्यक है | 
पॉलीबैग मैं मिट्टी डालना: 
पॉलीबैग मैं मिट्टी बोहोत सावधानी से डालना चाहिए क्यूंकि पौधो का सु-वृद्धि इसका उपर ही निर्भर करता है | ऊपर का मिट्टी को ही बैग मैं भरना चाहिए | मिट्टी को चूर्ण करके रहने पत्थर,जड़ और पट्टा आदि को निकाल कर ही मिट्टी भरना चाहिए | यदि उर्वर नहीं है तो पचा हुवा गोवर 1:9 अनुपात मैं मिट्टी के साथ मिलाना है | मिट्टी डालना समय बैग का अंदर रिक्त स्थान ना रहे इसका ध्यान रहे | मिट्टी का उपर अंश मैं 20-25 ग्राम रोक फास्फेट खाद मिलाने से जड़ का वृद्धि मैं अच्छा होता है |
नाला : पॉलीबैग को रखने के लिए लम्बा करके लगभग 20 सें:मी: गहरा तक मिट्टी को खोदाई करना चाहिए | नाला को दो पॉलीबैग रखने कि जगह के हिसाब से लगभग 50 सें:मी: चौड़ाई करना चाहिए | दो नाला का बीज मै खाली जगह रखे ताकि पौधों को देखभाल के लिए आने जाने मै कोई दिक्कत ना हो | 
बैग मै स्टंप का रुपण : अगर बोहोत दिन पहले बैग मै मिट्टी डाला हुवा था तो रुपण के दो दिन पहले बैग मै थोड़ा पानी डालने से मिट्टी थोड़ा बैठ जाता है और नरम होती है, लेकिन स्टंप को ठीक लगाने से पहले पानी नहीं देना है | स्टंप को लाकर पहले बंधे हुवे गांठ को खोलना है और अगर मुकुल अंश मै केला पेड़ का छाल होने से हटाए | स्टंप को जितना जल्दी हो सके रुपण करना चाहिए इसलिए रुपण के लिए स्टंप लाने से पहले ही पॉलिथीन बैग मै मिट्टी डालकर रखना चाहिए | रुपण से पहले स्टंप का मूल जड़ को थोड़ासा नया करके काट देना चाहिए | ये करने से जल्द से मूल जड़ अंकुरित होंगी | रुपण के ठीक पहले गोवर पानी मै स्टंप को डालकर थोड़ा समय छाया मै रखना चाहिए, उसके बाद ही रुपण करने से गोवर मै रहने वाला हरमन क्रिया कि बजह से जड़ का वृद्धि मै अच्छा होता है | पॉलीबैग मै रुपण के लिए स्टंप का पाश्वीय जड़ों को थोड़ा काट देना चाहिए अगर ज्यादा लम्बा हो तो लेकिन पूरी तरह से रगड़ना नहीं चाहिए | रुपण के समय एक तेज़ किया हुवा लकड़ी के सहारे पॉलीबैग कि बीज मै गारकर थोड़ा खोदकर स्टंप को डालना चाहिए | लेकिन ध्यान रहे कि मुकुल को मिट्टी के अंदर डालना नहीं है बल्कि मिट्टी से उपर रखना चाहिए | रुपण के दौरान बगल का मिट्टी को दबाकर ठोस कर स्टंप को रुपण करना चाहिए और नीचे कि हिस्सा मै खाली स्थान नहीं रखनी चाहिए | नालों मै जब स्टंप को लगाने के बाद दो पॉलीबैग को जब सामने रखते है तब वह दो लाइन के पॉलीबैग मै मुकुल कि स्थान बिपरीत स्थान मै रखना चाहिए,  नहीं तो बाद ये आपस मै लग जाएगा और इसका वृद्धि मै रुकावट उत्पन्न होंगी | 
पॉलीबैग कि प्रतिपालन कि ब्यवस्थाएँ : 
• तेज़ सूर्य कि किरणों से बचने के लिए पौधों के उपर नारियल अथवा 


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To be continuned.. 

Sunday, June 23, 2019

Rubber cultivation, tress, information

Rubber trees


Rubber trees are large, strong, with wide leaves. In India, winter is normal from December to February. Stay tuned for updates and colors in sleep mode. Step 3 The fruits ripen and rot from July to September. Seeds have dark brown spots with impurities. Propagation of plants for commercial cultivation, especially in the methods of selection of plants of higher grades (clones) in seedlings Water is an insect.

     

RUBBER NURSERY(रबड़ की नर्सरी)

Collection and germination of seeds (रबड़ के बीजों का संग्रह और अंकुरण)

Germination bed

A seed viability is very short,  seeds are collected for planting soon after fruit dehiscence. Collected seeds are packed with moist charcoal powder in gunny bags lined with perforated polythene sheets. Seeds should be germinated before planting by sowing them on germination beds. Germination beds are prepared with the top em made up of river sand or well-leached coir pith. The beds should be raised 10-15 em above ground to avoid water logging and be of 90 em width and convenient length. Partial shading may be provided to protect from strong sunlight. 

Seeds are sown elosely in single layer and pressed firmly into the sand leaving the surface of seeds just visible above the sand. Germination bed should be kept moist but not wet by sprinkling water in the morning and evening and covering with loosely woven coir or gunny mat. Too dry and wet conditions are undesirable. Germination starts one week after sowing. Seeds sprouted on each day should be picked into a vessel containing water to avoid injury. The picked seeds should be planted in seedling nursery without delay.

सामान्य रूप से कम परिसर का रबर बागान के लिए नर्सरी का जरूरत नहीं हैं ! इसके लिए एक भरसे मंद नर्सरी से रबर पॉलीबैग खरीद कर लगाना ही ठीक है ! लेकिन बिशाल परिसर का रबर बागान लगाने के लिए या कोई नया जगह पर बागान शुरू करने के लिए नर्सरी बनाना पहला काम होगा ! रबर पौधे का नर्सरी एक लाभदायी व्यवसाय है, ब्यक्तिगत खंड मैं इस मैक्सक से नर्सरी किया जाता है ! इसके लिए किसानों को प्रशिषण लेना पड़ेगा रबर बोर्ड का कर्चारियों से ! एक नर्सरी शुरुवात करने के लिए क्या क्या पदक्षेप लेना पड़ेगा: 

1. मिट्टी निर्वाचन :

 पानी जमा ना होनेवाला मिट्टी चाहिए ! आना जाना सुबिधा हो और समतल मिट्टी हो ! एक बड़े परिसर मैं समतल कोई कोई जगह पर नहीं भी हो सकता है,  इसलिए थोड़ा कम उंचाईं ढलान मिट्टी भी चलेगा नर्सरी मै लिए ! सरुवा, पलसुवा मिट्टी आसानी से निकाल कर पर हो जानेवाला मिट्टी अच्छा है ! एक नर्सरी मैं एक हैक्टर मैं लग भाग 70000-75000 पौधे लगा सकता है! 

2. रबर का बीज संग्रह : 

रबर का बीज जुलाई महीना के अंत से अगस्त महीना तक परिपक्क हो जाता है! रबर बीजों का उम्र कल बोहोत कम है, इसलिए जल्दी से ख़राब हो जाता है! इसलिए बीजों को संग्रह के बाद ही नर्सरी मैं लेके जाना चाहिए ! इसके लिए आपको पहले से ही प्राथमिक बीज स्थल को तैयार करके रखना चाहिए ! अगर ज्यादा दूर मैं बीजों को लेके जाना होता है तो बीजों के साथ लकड़ी कि चूर्ण या कोइला का चूर्ण को मिलाने से थोड़ा दिन तक अच्छा रहता है! बागीसा से बीज संग्रह करते समय ख़राब बीज को निकाल कर अच्छा और स्वास्थ बीज को ही रखे! नर्सरी के लिए जितना हो सके उतना जल्दी बीजों को संग्रह करना चाहिए ! बीजों को जल्दी रुपण करने से अक्टूबर-नवंबर महीना का मौचूमी हवा का अंत बारिश मिलने से पौधा अच्छा होता है और सर्दी का प्रकोप के पहले ही ताज़ा होता है ! 

3. प्राथमिक बीज स्थल( Germination bed) : 

नर्सरी का एक अंश मैं प्राथमिक बीज स्थल या अंकुरण बीज स्थलों को तैयार किया जाता है ! इस स्थलों को तीन फुट चौड़ाई और लम्बाई अपने सुविधा अनुसार किया जाना चाहिए ! उपर कि और  ऊचांई 10-15 से:मी: करके बनाना चाहिए ताकि पानी जमा ना हो सके और बीज स्थल का उपर मैं 5 से: मी: नदी का बालू देकर बीजों को रुपण करना चाहिए ! 
           रबर बीजों को नर्सरी मैं लाने के बाद बांस का कोटरी मैं लेकर पानी मैं धोना चाहिए तब बीजों मैं मिक्स किया हुवा कोइला हट जायेगा ! उसके बाद बीजों को तैयार किया हुवा स्थलों के बालू मैं बिछा दे, एक दूसरे के साथ समेत कर एक स्तर पर हथेली का दबाव से ! ध्यान रहे बीज का अंकुर निकलने वाला अग्र भाग मिट्टी का नीचे कि और हो नहीं तो जड़ तेरा होके नीचे मैं जा सकता है और बाद मैं पौधा रुपण के लिए उपयोगी नहीं रहेगा ! अब मारपात का बस्ता से या नारियल का चमड़ा से बनाया हुवा कार्पेट से धक् दे ! सुबह-शाम यहाँ दो बार पानी देना चाहिए ! 4-7 दिन के अंदर ही अंकुर निकलना शुरू हो जाता है बीजों अंकुरण होने के बाद इसलिए अंकुरित बीजों को द्वितीय पौधे स्थल पर स्थानांतरण किया जाता है! अंकुर को ज्यादा बड़ा होने नहीं देना चाहिए उसके लिए बस्ता को उठाकर बीज बीज मैं देखना चाहिए इसमें एक बात का ध्यान रहे कि जब बस्ता को उठाते हो तब ज्यादा जोर से नहीं उठाना चाहिए, कुछ अंकुरित बीज बस्ता मैं लगा रहता है इसलिए ऐसा करने से टूट भी सकता है ! बीज को लेने के लिए एक बाल्टी पर आधा पानी लेकर आराम से अंकुरित बीजों को बाल्टी मैं डाले ताकि अंकुर टूट ना जाये! अगर दो-तीन सप्ते के बाद भी अंकुर नहीं निकला तो वह लेना नहीं चाहिए ताकि बाद मैं कमजोर पौधे का उत्पादन ना हो! 

4. अंकुर नर्सरी का बेदिका तैयार 

अंकुरित बीजों को स्थानांतरण करने से पहले अंकुर नर्सरी का स्थल यानि द्वितीय पौधे स्थल को तैयार करना चाहिए ! पौधे स्थल को 75 से : मी : गभीर तक मिट्टी को खोदाई कर पत्थर और जबरा बगेरा निकालना चाहिए ! पौधे का यह बेदिका की चौड़ाई 60 से 120 से : मी : और लम्बाई अपने सुविधा अनुसार करें ! बेडिकाओं के बीज रास्ता रखना चाहिए ताकि आना-जाना मैं सुविधा हो ! 
खाद प्रयोग : प्रति हैक्टर नर्सरी मैं 2500 कि:लो: सूखा गोबर या पाचा हुवा खाद और 350 कि लो का रॉक फासफाते का चूर्ण बेदिका मैं मिक्स करना चाहिए ! नया करके जंगल काट कर परिष्कार किया हुवा सरुवा मिट्टी मैं पचा खाद या सूखा गोबर प्रयोग नहीं करने से भी चलेगा ! 

5. पौधे का रुपण 

अंकुरित बीजों को द्वितीय पौधे स्थल पर लाइन लाइन करके जड़ अंश को नीचे कि और करके मिट्टी मैं एक छोटा गधा कर रुपण किया जाता है ! नर्सरी का पौधे उत्पादन को गौर करके और मिट्टी का आकार के उपर निर्भर करके भिन्न दुरी पर रुपण किया जाता है ! सामान्य रूप से 30×30 से : मी : (ब्राउन बडिंग के लिए) और 23×23 से : मी : (ग्रीन बडिंग के लिए) दुरी पर रुपण करते है ! इसके लिए एक रस्सी मैं निर्दिष्ट दुरी पर चिन्हित करके पौधे को रुपण करने से लाइन समान दुरत्त पर होंगे ! 

6. पौधे का देख-भाल 

अंकुर नर्सरी मैं पौधे को स्वस्थ और बलवान बनाने कि लिए नीचे दिए गये नियमों का पालन करना चाहिए..
क) ज्यादा सूखा होने से पानी दे 
ख) अनावस्यक घास आदि को हटाए 
ग) पौधों को सूखा पट्टा से मल्चिंग करना चाहिए ! ये सूर्य का तीब्र किरणों से पौधों को बचाता है और मिट्टी मैं गीलापन को अटूट रखता है 
घ) सर्दी मौसम मैं देखा जाने वाला पाउडरी मिल्डयु रोग होने से सल्फर का चूर्ण छिरकाव करें 
खाद प्रयोग : 
क) पौधे लगाने के 6-8 सप्ते के बाद पौधों मैं प्रति हैक्टर मैं 2500 कि : ग्राम NPK 10:10:4 हिसाब से पौधों के बीज प्रयोग करे 
ख) पहली बार खाद प्रयोग के बाद फिर 6-8 सप्ते के बाद प्रति हैक्टर मैं 550 कि:ग्राम यूरिया पौधों के आस-पास प्रयोग करें !

7. मुकुल नवोदित या बडिंग 

पौधों के आकार और उम्र के उपर निर्भर करके दोनों प्रकार के बडिंग किया जाता है ! 2-8 सप्ते के अंदर हरा बडिंग किया जाता है और 10 महीना के बाद भूरा बडिंग कर सकते है ! ज्यादा सूखा और ज्यादा नहीं होने से बडिंग का अधिक सफलता मिलता है ! सामान्य रूप से अप्रैल महीना से ही बडिंग कर सकते है ! 

               बुडवुड या मातृ पेड़ से डाली काट कर लाना चाहिए बडिंग के लिए! इस डाली से ताज़ा अवस्था मैं मुकुल के साथ चमड़ा को निकाल के नर्सरी पौधों के नीच हिस्सा मैं समान आकार मैं चमड़ा हटाकर वहा चिपका देकर मुकुल नवोदित या बडिंग  किया जाता है ! पॉलिथीन का पट्टे से बडिंग किया हुवा अंश को कड़ा से बांधना चाहिए ताकि अंदर पानी ना जा सके और मुकुल क चमड़ा पौधे मैं छिपकर लगे रहे ! बडिंग के तीन सप्ते के बाद पट्टी का पॉलिथीन को खोलकर, मुकुल का उपर का अंश मैं नाखून से निशान देकर परीक्षा कि जाती है | यदि वहा से लेटेक्स निकलता है, समझना होगा कि मुकुल नवोदन सफल हुवा है | बडिंग सक्सेस पौधों के मुकुल का उपर मैं पॉलिथीन क फीता से बांधकर सफल कि चिह्नित किया जाता है, उसके बाद एक सप्ते के बाद इस पौधों को रुपण या बुड्डेढ स्टंप बनाने के लिए तैयार हो जाता है | सफल मुकुल नवोदित पौधों को दो पैरों के बीज मैं लेकर जोर से खिसकर उभालना चाहिए | निकालने (पोलिंग आउट) के बाद मुकुल का उपर मैं 7.5 से : मी: दुरी पर काट कर हटाना चाहिए और मुकुल का बिपरीत दिशा मैं 45° मैं अक्सर काटा जाना चाहिए | इस तरह काटने के बाद वहा तरल मोम पर डालना चाहिए | अगर ज्यादा लम्बा हो तो काटना चाहिए |अगर बुड्डेढ स्टंप को दूर मैं लेके जाना हो तो मुकुल का अंश मैं केला पेड़ का चमड़ा से रबर बेंड का साहेता से बांधना चाहिए ताकि वहा कोई खोरोस ना आये | 

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To be continue...

Monday, June 10, 2019

Introduce of natural rubber, cultivation, रबड़ खेत


Introduce of natural rubber

रबड़ का परिचय 

Rubber trees

दोस्तों आज मै एक अनोखा फशल के बारे में बताने जा रहा हूं आप लोग अंत तक पढ़िए क्यूंकि इश्के द्वारा आप बहोत पैसा कमा सकते हैं,  वह लाभदायी फशल का नाम हैं रबड़ जी हा दोस्तों रबड़ खेती करके खुद तो स्वाबलम्बी तो बना सकता ही हैं साथ में दूसरो को भी कर्मसंस्तान दे सकते हैं ! रबड़  को पहली बार के लिए अमेज़न जोंगोल में पाए गिये थे! पहली बार के लिए रबड़ प्लांटेशन ब्राशील में सन 1873 में हुआ था, इसीलिए इसका सइंटिफ़िक नाम "Hevea brasiliensis" नाम रखा गया! 
रबड़ फशल को "Sir Henry Wickham" ने सबसे  पहले खोज कर निकाले थे अमेज़न बेसिन से इशलिये उन्हें रबड़ के जन्मदाता कहलाते हैं पुरे दुनिया में ओर रबड़ को ब्रासिल के पारा जिला में पाए गये थे इशलिये इसे पारा रबड़ भी कहा जाता हैं! पहले इसका प्रयोग पेन्सिल के निशान मिटाने के लिये किया जाता था। आज यह विश्व की महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से है। इसका प्रयोग मोटर के ट्यूब, टायर, वाटर प्रूफ कपड़े, जूते तथा विभिन्न प्रकार के दैनिक उपयोग की वस्तुओं में होता है!  

 थाईलैंड, इण्डोनेशिया, मलेशिया, भारत, चीन, वियतनाम और श्रीलंका प्रमुख उत्पादक देश है।  भारत का विश्व उत्पादन में चौथा स्थान है लेकिन घरेलू खपत अधिक होने के कारण यह रबर का दोहरा करता है।  सबसे पहले हमारे भारत में केरल में नासर प्लांट हुवा की सन 1902 में ओर पुरे एशिया महादेश के अंदर पहली बार के लिए हुवा थी श्री लंका में सन 1876 में!  लेकिन अभी तक वियतनाम से बोहोत अच्छी गुणवत्ता के रबड़ का उत्पादन होता है!