Thursday, November 28, 2019

Rubber cultivation, Stump, polybag nursery

Seedling Nursery

Rubber nursery
Level lands with water table at least 60 cm below is ideal for raising seedling nursery. On slopes, nursery beds can be made along the contours. As sunlight is essential, shaded areas should be avoided. Soil should be deep, well- drained loam with good fertility status. Soil should be dug up to a depth of 75 cm and all stumps and stones removed, Raised beds (15 cm) should be prepared with width of 60 to 120 cm and convenient length. Pathways to facilitate cultural operations and drainage facilities should be provided in between the beds. The spacings adopted for planting in seedling nurseries are 23×23 cm (for green budding) and 30×30 cm (for brown budding). The planting rows at the specific distance is marked on either ends of the bed and a long cord with planting distance marked on it is stretched across the row marks. Germinated seeds are planted at each planting distance mark on the cord. One hectare of nursery land can accommodate around 75000 seedlings. With periodic thinning and 80 % budding success, about 50000 budded stumps will be available for planting. Only healthy and vigorously growing plants should be allowed to grow in the nursery. All weak plants should be removed as early as possible. Such culling should be done at fortnightly intervals.

Application of a pre-emergent herbicide like diuron at the rate of 2.5 kg in 700 L of water per effective hectare if applied after preparation of beds prevents weed growth for 6 to 7 weeks. Manual weeding should be done at monthly intervals. Mulching in between the plant rows reduces weed growth besides conserving soil moisture and regulating soil temperature. Dried grass, undergrowth from forests, dried cover crop material, etc. can be used for mulching. Mulching should be done soon after the rainy season to conserve soil moisture.

Addition of 25 kg of compost or dried cattle manure and 4 kg of rock phosphate for every 100 m2 of nursery bed is recommended as basal dressing, When same area is repeatedly used, rock phosphate needs to be applied only once in three years. Application of 275 kg urea, 780 kg rock phosphate, 85 kg muriate of potash and 235 kg of magnesium sulphate or 1255 kg of 10-10-4-1.5 NPKMg mixture and 118 kg of magnesium sulphate per hectare after 6 to 8 weeks from planting is recommended.After 6 to 8 weeks from first application urea may be applied at the rate of 275 kg/ha before mulching. Zinc sulphate at the rate of 25 kg/ha may be applied if necessary, two weeks after the fertilizer application. Plant protection by regular spraying of fungicides and insecticides will be necessary to prevent disease/insect pest damage. Regular spraying of 1 % Bordeaux mixture prevents wet season diseases. Mancozeb 0.2 % is sprayed to control leaf spot diseases. Other pesticides also can be used selectively at recommended dosages Shading also is essential to protect the plants from sun scorch. Partial shade of 30 to 50 % using shade nets, coconut fronds etc, is recommended. Irrigation will be essential if soil moisture is low. Daily watering may be preferred initially. Later frequency of irrigation can be reduced to once in two to three days. Summer irrigation helps to increase dry matter production and healthy growth of seedlings. When sufficiently grown, seedlings can be used for budding.

बीज नर्सरी

अंकुर नर्सरी को बढ़ाने के लिए कम से कम 60 सेंटीमीटर नीचे की जल स्तर वाली भूमि उपयुक्त है। सूरज की रोशनी आवश्यक है बीज नरसरी के लिए, छायांकित क्षेत्रों से बचा जाना चाहिए। बेदिका को जब बनाते हैं मिट्टी को 75 सेंटीमीटर की गहराई तक खोदना चाहिए और मिट्टी को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए कोईभी पत्थर बगेरा नहीं रहना चाहिए और बेदिका को मिट्टी से 15 सेन्टीमीटर्स उठाकर बनाना चाहिए ! 60 से 120 सेमी की चौड़ाई और सुविधाजनक लंबाई के साथ बेदिका को तैयार करना चाहिए।  बेदिका के बीज रास्ता रखना चाहिए ताकि पानी देने के लिए सुबिधा हो ! अंकुर नर्सरियों 23 x 23 सेमी (ग्रीन बडिंग के लिए) और 30 x 30 सेमी (ब्राउन बडिंग के लिए) की दुरी पर बीज को रोपण करना चाहिए हैं।  इस तरह से एक सही माप लेने के लिए एक रची की मदद ली जा सकती हैं, पहले रची  को विशिष्ट दूरी (उपर मै दिया गया हिसाब मै) रची मै निसान लगा लेना चाहिए उसके बाद बेदिका की एक माथा से दूसरी माथा तक खीचकर रची को बेदिका की उपर डालकर बीजों को रोपण किया जा सकता हैं !  एक हेक्टेयर नर्सरी भूमि में लगभग 75000 अंकुरित बीज रोपण किया जा सकते हैं। अगर उनमे से 80% भी मुकुल संजुजन सफलता हुई तों 50000 मुकुल संजुजित पौधे रबड़ खेत के लिए उपलब्ध  होंगे। केवल स्वस्थ और अच्छी पौधे  को रखकर बाकि को निकाल देना चाहिए। सभी कमजोर पौधों को जल्द से जल्द हटाया जाना चाहिए। 

अंकुर बेदिका की तैयारी के बाद लागू होने पर प्रति हेक्टेयर के लिए 700 लीटर पानी में 2.5 किलोग्राम की दर से डाइयुरॉन मिलाकर प्रयोग करना चाहिए ! ये देने से जंगली घास 6 से 7 सप्ताह तक की वृद्धि को रोकता है।  मासिक अंतराल पर सफाई किया जाना चाहिए। पौधे की पंक्तियों के बीच में सूखे पट्टे से ढाकना चाहिए तब मिट्टी की नमी को संरक्षित और मिट्टी के तापमान को नियंत्रित रखता हैं उसके अलावा जंगली घाँस की वृद्धि कम हो जाती है।  सूखे घास, सूखे पट्टे और सूखे कवर फसल आदि का ढाकने ने के लिए उपयोग कर सकता है।  मिट्टी की नमी को संरक्षित करने के लिए बरसात के मौसम के तुरंत बाद मल्चिंग(Mulching)  किया जाना चाहिए। 
नर्सरी की स्थापना से पहले खाद प्रयोग  के लिए एक तालिका तैयार करने की आवश्यक है प्रत्येक जगग के लिए! नर्सरी बेड के प्रत्येक 100 वर्ग मीटर के लिए 25 किलोग्राम खाद या सूखे मवेशी खाद और 4 किलोग्राम रॉक फॉस्फेट की जरूरत है, जब एक ही क्षेत्र का बार-बार उपयोग किया जाता है, तो रॉक फॉस्फेट को तीन साल में केवल एक बार लागू करने की आवश्यकता होती है। रोपण से 6 से 8 सप्ताह बाद 275 किग्रा यूरिया, 780 किग्रा रॉक फॉस्फेट, 85 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश और 235 किग्रा मैग्नीशियम सल्फेट या 1255 किग्रा (10-10-4-1) एन.पी.के का मिश्रण और 118 किग्रा मैग्नीशियम सल्फेट प्रति हेक्टेयर मै प्रयोग करें! 6 से 8 सप्ताह बाद यूरिया 275 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग  किया जाना चाहिए मल्चिंग से पहले। यदि आवश्यक हो तो खाद आवेदन के दो सप्ताह बाद 25 किग्रा / हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट लगाया जा सकता है। पौधे को रोग और कीट से बचाव के लिए फफूंदनाशकों और कीटनाशकों के नियमित रूप से इश्तेमाल करना चाहिए। 1% बोर्डो मिश्रण का नियमित छिड़काव करें गीला मौसम रोगों को रोकने के लिए। "लीफ स्पॉट" नाम की  रोगों को नियंत्रित करने के लिए मैनकोजेब 0.2% का छिड़काव करना  चाहिए। अन्य कीटनाशकों का भी उपयोग कर सकते है! पौधों को धूप से बचाने के लिए छायांकन भी आवश्यक है। शेड नेट, नारियल के पट्टे आदि का उपयोग करके 30 से 50% की आंशिक छाया की इंतजाम किया जा सकता है। मिट्टी की नमी कम होने पर सिंचाई जरूरी होगी। शुरू में दैनिक पानी दे सकता है। बाद में सिंचाई की आवृत्ति दो से तीन दिनों में कम हो सकती है। ग्रीष्मकालीन सिंचाई शुष्क पदार्थ उत्पादन और पौध की स्वस्थ वृद्धि को बढ़ाने में मदद करती है। जब पर्याप्त रूप से उगाया जाता है, तब पौधे को मुकुल संजुजन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

रबर पौधा पालीथीन बैग मैं डालना : 
रबर पौधा को पॉलीबैग बनाकर रुपण करने से अपरिपक्क अबस्था घटता है | पौधों को पॉलीबैग मैं डालने का क्या क्या लाभ होता है नीचे दिए गये है..
(¡) अपरिपक्क अबस्था कमसे कम एक साल कम करना | एक साल नर्सरी मैं ही बड़ा होने के रखता है | 
(¡¡) कमजोर और अनुपयोगी पौधों को नर्सरी मैं ही बर्जन करना |
(¡¡¡) एक आकार का पॉलीबैग को रुपण करने से रबर बागीसा मैं पौधों का आकार बराबर से वृद्धि होंगी | 
(iv) बागीसा मैं कुछ पौधे अगर वृद्धि नहीं हो रहा है या मर जाने से जो रिक्त स्थान होता है, उसको तुरंत पूरा कर सकते है | 
पहले ज़माने मैं किसान बुड्डेढ स्टंप को बागीसा मैं गाड़ा खोदकर प्रतक्ष्य रूप से रुपण किया जाता था | लेकिन इन परिस्थितियों मैं किसानों का बोहोत असुबिधाये होती थी, जैसे पौधों का मुकुल से कली नहीं निकला हुवा पौधों को हटाना और समरूप से पौधों नहीं होना इत्यादि | इसके आलावा प्रतक्ष्य रूप से रुपण कि सफलता निर्भर करता है मौसम का अनुकूलता का उपर और पौधों का स्वस्थ होने पर | 

पॉलीबैग और इसका आकार : 
किस अबस्था मैं पौधों को रुपण किया जाता है, उसका उपर पॉलीबैग का आकार निर्भर होता है | 
(i) दो स्तर वाली डाली की  पौधों के लिए 45×18 से: मी: 300-400 गेज मोटा बैग का जरूरत है | इस पॉलिथीन बैग मैं लगभग 7 कि: ग्राम मिट्टी डाल सकते है | इस पौधों को अधिकतम चार महीने तक रख सकता है | 
(ii) तीन या चार स्तर वाली डाली कि पौधों के लिए 55×25 से: मी:, इसमें 400 गेज मोटा बैग कि जरूरत है | इसमें लगभग 10 कि: ग्राम मिट्टी भरा सकते है | इस पौधों को छे महीने तक रख सकते है | 
(iii) 6 स्तर वाली डाली की पौधों के लिए 60×30 से: मी: और 500 गेज मोटा बैग का जरूरत है | इस पौधों को 9 महीने तक बैग मैं रख सकते है | 
एक पॉलीबैग मिट्टी के साथ 18-20 कि: ग्राम तक हो सकता है| उत्तर-पूर्वांचल के पहाड़ स्थानों मैं लेकर जाना बोहोत मुश्किल है, इसलिए ले जाने कि सुविधा के लिए छोटा आकार बैग ही बेहतर है | पॉलीबैग का नीचे कि और लगभग 20 छेद रखना चाहिए, ताकि अतिरिक्त पानी निकाल सके | साधारण रूप से LDPE से तैयारी और काला रंग का पॉलीथिन ही इस्तेमाल होता है | 
पॉलीबैग के लिए स्थान निर्वाचन :
पॉलीबैग नर्सरी हो सके तो बागीसा का सामने करना चाहिए | धुप गिरना, खोला जगह, समान मिट्टी और जहाँ पानी जमा होने कि आशंका नहीं है वहाँ पॉलीबैग नर्सरी के लिए निर्वाचन कर कर सकते है | बांस या काटा तारों से दीवाल देना चाहिए | नर्सरी मैं पानी कि मजूदि आबश्यक है | 
पॉलीबैग मैं मिट्टी डालना: 
पॉलीबैग मैं मिट्टी बोहोत सावधानी से डालना चाहिए क्यूंकि पौधो का सु-वृद्धि इसका उपर ही निर्भर करता है | ऊपर का मिट्टी को ही बैग मैं भरना चाहिए | मिट्टी को चूर्ण करके रहने पत्थर,जड़ और पट्टा आदि को निकाल कर ही मिट्टी भरना चाहिए | यदि उर्वर नहीं है तो पचा हुवा गोवर 1:9 अनुपात मैं मिट्टी के साथ मिलाना है | मिट्टी डालना समय बैग का अंदर रिक्त स्थान ना रहे इसका ध्यान रहे | मिट्टी का उपर अंश मैं 20-25 ग्राम रोक फास्फेट खाद मिलाने से जड़ का वृद्धि मैं अच्छा होता है |
नाला : पॉलीबैग को रखने के लिए लम्बा करके लगभग 20 सें:मी: गहरा तक मिट्टी को खोदाई करना चाहिए | नाला को दो पॉलीबैग रखने कि जगह के हिसाब से लगभग 50 सें:मी: चौड़ाई करना चाहिए | दो नाला का बीज मै खाली जगह रखे ताकि पौधों को देखभाल के लिए आने जाने मै कोई दिक्कत ना हो | 
बैग मै स्टंप का रुपण : अगर बोहोत दिन पहले बैग मै मिट्टी डाला हुवा था तो रुपण के दो दिन पहले बैग मै थोड़ा पानी डालने से मिट्टी थोड़ा बैठ जाता है और नरम होती है, लेकिन स्टंप को ठीक लगाने से पहले पानी नहीं देना है | स्टंप को लाकर पहले बंधे हुवे गांठ को खोलना है और अगर मुकुल अंश मै केला पेड़ का छाल होने से हटाए | स्टंप को जितना जल्दी हो सके रुपण करना चाहिए इसलिए रुपण के लिए स्टंप लाने से पहले ही पॉलिथीन बैग मै मिट्टी डालकर रखना चाहिए | रुपण से पहले स्टंप का मूल जड़ को थोड़ासा नया करके काट देना चाहिए | ये करने से जल्द से मूल जड़ अंकुरित होंगी | रुपण के ठीक पहले गोवर पानी मै स्टंप को डालकर थोड़ा समय छाया मै रखना चाहिए, उसके बाद ही रुपण करने से गोवर मै रहने वाला हरमन क्रिया कि बजह से जड़ का वृद्धि मै अच्छा होता है | पॉलीबैग मै रुपण के लिए स्टंप का पाश्वीय जड़ों को थोड़ा काट देना चाहिए अगर ज्यादा लम्बा हो तो लेकिन पूरी तरह से रगड़ना नहीं चाहिए | रुपण के समय एक तेज़ किया हुवा लकड़ी के सहारे पॉलीबैग कि बीज मै गारकर थोड़ा खोदकर स्टंप को डालना चाहिए | लेकिन ध्यान रहे कि मुकुल को मिट्टी के अंदर डालना नहीं है बल्कि मिट्टी से उपर रखना चाहिए | रुपण के दौरान बगल का मिट्टी को दबाकर ठोस कर स्टंप को रुपण करना चाहिए और नीचे कि हिस्सा मै खाली स्थान नहीं रखनी चाहिए | नालों मै जब स्टंप को लगाने के बाद दो पॉलीबैग को जब सामने रखते है तब वह दो लाइन के पॉलीबैग मै मुकुल कि स्थान बिपरीत स्थान मै रखना चाहिए,  नहीं तो बाद ये आपस मै लग जाएगा और इसका वृद्धि मै रुकावट उत्पन्न होंगी | 
पॉलीबैग कि प्रतिपालन कि ब्यवस्थाएँ : 
• तेज़ सूर्य कि किरणों से बचने के लिए पौधों के उपर नारियल अथवा 


Know more click here



To be continuned..